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उठो नारी तुम्हें अब उठाना होगा

सपना
दिल्ली
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उठो नारी
तुम्हें अब उठाना
होगा नारी
क्यों तू हारी
तोड़ चुप्पी अपनी आवाज़ उठानी होगी
बहुत सह लिया तुमने अब नहीं सहेगी
बहुत जिया अपनों के लिए
तुम्हें अब अपने लिए भी
जीना होगा….
देखा जाएगा जो भी होगा
यह ख़ुद को सिखा री
ख़ुद को न समझ
तू कमज़ोर
बिना तेरे सृष्टि का अस्तित्व
मिट्टी में मिल जाएगा
ज़ोर से कह, मचा शोर
दुर्गा भी तू
चंडी भी तू
ममता की मूरत भी तुझसे री …
इस धोखे में न रहना तू
तेरी लाज़ बचाने को
कृष्ण बन कोई आएगा
तुझे बचाएगा
बन काली  अपनी लाज़
ख़ुद ही बचानी होगी
विश्वास कर तू सब कुछ करने जोगी
और न बन बावरी….

रुकना नहीं, झुकना नहीं
तोड़ विवशताओं के बंधन सारे
बस आगे ही बढ़ते जाना है
अपनी मंज़िल को पाना है
कर  ख़ुद पर  यकीन
अपने सपनों को कर नवीन
अपना सम्मान तुम्हें पाना होगा
अपना गीत गाना होगा
दूसरों के लिए ही तो
जीती रही हो अब तक
ख़ुद के लिए अब जीना होगा

देखा जाएगा जो भी होगा
क्यों तू हारी
सृष्टि की सुंदरता री
मत झुक
मत रूक
उठो नारी
तुम्हें अब उठाना होगा।

परिचय :- सपना
पिता- बान गंगा नेगी
माता- लता कुमारी
शैक्षणिक योग्यता- एम.ए.(हिंदी), सेट, नेट, जेआर. एफ. अनुवाद में डिप्लोमा ( अंग्रेज़ी से हिंदी), पी.एचडी. (ज़ारी)
साहित्यिक उपलब्धियां- १५ से अधिक राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय संगोष्ठियों में सहभागिता तथा प्रपत्र वाचन एवं विभिन्न पत्रिकाओं/ संपादित पुस्तकों में विभिन्न विषयों पर शोधालेख प्रकाशित। साथ ही साहित्य सिनेमा सेतु वेबसाइट पर कुछ कविताओं का प्रकाशन।
निवासी- दिल्ली
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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