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प्रेम की प्रतीक्षा

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रचयिता : भारती कुमारी

ह्रदय से दूर जो तुम जाते हो तो
ऊँघनें लगती है मधुमय प्रेम प्रिये
बदलती हूँ करवटें नींद की प्रतीक्षा में
तो अंगार-सी बन जाती है मधुर सपनें
उत्सुकता में प्रेम की जान पहचान प्रिये
बेरूखी से हो जाती है प्रेम की पहचान प्रिये
सूना मन , निर्जन पथ , मुरझाई ह्रदय
नश्वर हो रही अब प्रेम की झंकार प्रिये
अधूरी प्रेम अस्तित्व से अनभिज्ञ हो रही
सुनू संगीत प्रेममय कैसे मधुर स्वर में
प्रेममयी ह्रदय करूणा में होकर
अब गहन अधरों में है खो रही
मधुमय सुरभि प्रेममयी भावनाएँ
अदभूत उमड़ी है प्रेममयी ह्रदय में
प्रिये प्रेममयी लहरों में आवेग नहीं
क्षण – क्षण में परिवर्तित ह्रदय हुये
तेरी प्रीत में रंगी जो मधुर मन
बेसुध हुई भूली भटकी संसार प्रिये
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लेखक परिचय :-  भारती कुमारी
निवासी – मोतिहारी , बिहार


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