Monday, December 23राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

स्वर-संगीत

अभिषेक श्रीवास्तव
जबलपुर म.प्र.

********************

संगीत
संगीत है शक्ति ईश्वर की, हर स्वर में बसे हैं राम।
रागी जो सुनाये रागनी, रोगी को मिले आराम।।

संगीत एक ऐसी शक्ति है जो कि हर किसी के मन को हरने में सक्षम है, हां सभी की पसंद अलग अलग हो सकती है। संगीत प्रकृति के कण कण में बसा हुआ है, चलती हुई मंद पवन, कल कल करके गिरते हुए झरने , बरसात में पानी की बूंदों के गिरने की आवाज, बादलों की गड़गड़ाहट एक तरह से सभी संगीत के अलग-अलग स्वर हैं जो कि प्रकृति के संगीत का परिचय देते हैं।

सांसारिक संगीत को भी कई भागों में बांटा गया है, शास्त्रीय संगीत, सुगम संगीत, प्रांतीय संगीत, भक्ति संगीत इत्यादि। संगीत को जानने वाले संगीतज्ञों ने तो संगीत का आनंद लिया ही है किन्तु इसके अलावा वे वर्ग जो कि संगीत को नहीं जानते हैं वे भी संगीत सुनकर उसमें खो जाते हैं। वैसे संगीत को जानना या ना जानना मायने नहीं रखता है, मायने रखता है तो वह है आपके मन एवं हृदय का संगीत से लगाव। जब संगीत के स्वर मानव हृदय को छूते हैं तो वह झूम उठता है , उसमें खो जाता है। शायद इसीलिये बड़े -बड़े महात्माओं ने संगीत को अपनी भक्ति का आधार बनाया है। जिसके माध्यम से वे अपने भगवान की भक्ति का आनंद उठा सकें। चाहे वे महर्षि नारद जी हों, कवि कालीदास जी हों, महात्मा तुलसीदास हों या श्रीकृष्णभक्त मीरा बाई हों। संगीत भक्ति मार्ग के ऐसे सहारे का कार्य करता है जिसकी सहायता से आप भक्ति मार्ग पर आसानी से बढ़ते चले जाते हैं।

संगीत में वैज्ञानिकों ने भी बहुत प्रयोग किये हैं। संगीत के सहारे बड़े-बड़े रोगों को ठीक करने के प्रयोग चल रहे हैं। एक प्रयोग के द्वारा यह निश्कर्ष निकला है कि शांत एवं सुगम संगीत जीवन तत्वों को बढ़ाते हैं जबकि शोर-शराबे से भरे हुए संगीत से जीवन तत्व कम होते हैं । शास्त्रीय संगीत प्राचीन काल से लोकप्रिय रहा है, इसमें जितने भी राग हैं वे अपनी अपनी विशेषताओं से समृद्व हैं। ऐसे ऐसे संगीतज्ञ हुये हैं जो कि इन रागों के प्रगाढ़ विद्वान रहे हैं। सम्राट तानसेन जब दीपक राग गाते थे तो दीप स्वयं ही प्रज्वलित हो जाते थे, उसी प्रकार जब मेघ राग गाते थे तो बादल वर्षा करने लगते थे। वही राग पहले भी थे और वही राग अब भी हैं किन्तु फर्क है तो सिर्फ संगीतज्ञ का। संगीत एक तपस्या से कम नहीं है, इसका जितना अभ्यास किया जायेगा उतना ही इसमें निखार आयेगा और एक समय ऐसा आयेगा कि संगीत ‘राग’ जिसमें निपुणता प्राप्त हो गयी है वह अपना प्रभाव दिखाने लगेगा। अभ्यास के साथ-साथ ईश्वर/संगीत के प्रति विश्वास भी इसमें आगे बढ़ने का रास्ता दिखाता है। संगीत सिर्फ गले से गाने से ही पूर्ण नहीं होता है बल्कि इसमें तो आपकी आत्मा की आवाज जो कि दिल से निकलती है भी पूर्णता को प्राप्त कराता है। आत्मा से निकला हुआ संगीत जो किसी कहानी का मोहताज नहीं होता और जब इसे गाया जाता है तो एक पूरा जीवन चरितार्थ होने लगता है ।

तानसेन से जब अकबर ने उनके गुरू के बारे में पूछा और कहा कि जब तुम इतना अच्छा गाते हो तो तुम्हारे गुरू कितना अच्छा गाते होंगे, इसलिये उन्हें दरबार में बुलाओ मै उन्हें सुनना चाहता हॅूं। तब तानसेन ने कहा कि मैं आपके लिये गाता हूॅं इसलिये मैं दरबार में हॅूं किन्तु मेरे गुरू को यदि सुनना चाहते हैं तो आपको रात्रि के समय उनके निवास पर जाकर, छुपकर सुनना होगा। अकबर ने ऐसा ही किया जब वे रात्रि के समय तानसेन के श्रीगुरू के निवास पर जाकर संगीत सुन रहे थे तो उन्हें समय का भान भी न रहा, वे केवल उस संगीत में ही खो गये। जब संगीत बंद हुआ तब जाकर उन्हें चेतना हुई। महल लौटकर उन्होंने तानसेन से पूछा कि उस संगीत में ऐसा क्या था कि मेरे साथ ऐसा हुआ, मुझे तो ऐसा प्रतीत हो रहा था कि मै किसी और ही दुनिया मैं पहॅुंच गया हॅूं और जैसे कि मैं अल्लाह /ईश्वर के बहुत करीब हॅूं। तब तानसेन ने कहा कि ऐसा संगीत जो कि किसी सांसारिक जीव के लिये नहीं वरन् केवल और केवल अपने प्रभु/ईश्वर के लिये गाया जाता है और जिसका उद्देश्य किसी भी प्रकार का लाभ कमाना नहीं वरन् केवल भक्ति होती है तो उस संगीत में ईश्वर का वास होता है, और मेरे श्रीगुरू केवल अपने ईश्वर के लिये बिना किसी स्वार्थ के संगीत साधना करते हैं। तब सम्राट अकबर को संगीत के इस पक्ष का ज्ञान हुआ।

संगीत को आधुनिक युग में जितना पसंद किया जाता है, उतने ही लोग आलोचक भी हैं, जो संगीत सुनना तो पसंद करते हैं किन्तु गाना या वाद्ययंत्र का बजाना पसंद नहीं करते। असल में उन्होंने संगीत को समझा ही नहीं या भ्रांतियों के चलते वे संगीत से दूर रहे हैं। संगीत के प्रारंभ में शब्दों को महत्व दिया जाता है, किन्तु जब हम उसमें आगे बढ़ते है या गहराई में उतरते हैं, तो शब्द कहीं खोने लगते हैं, और केवल धुन रह जाती है। और यही धुन आपके मष्तिष्क से होते हुए जीवन में उतरती है।

संगीत न केवल गायन या वादन है, बल्कि देखा जाए तो इसमें सारी सृष्टि का सार छिपा है। शास्त्रों में कहा गया है कि संगीत के सात स्वर सृष्टि के प्रारंभ से अंत और पुनः प्रारंभ का प्रतीक हैं।

सा – प्रतीक है ‘साकार’ का । (जब आदिशक्ति जो तेज स्वरूपा हैं उन्होंने साकार रूप धारण किया, तब सृष्टि की उत्पत्ति हुई।

रे – प्रतीक है ‘ऋषि’ का। (सृष्टि की उत्पत्ति के उपरांत सप्त ऋषि आए)

ग – प्रतीक है ‘गंधर्व’ का । (तदोपरांत गंधर्व आए)

म – प्रतीक है ‘महिपाल’ का। (महिपाल अर्थात् इंद्र अर्थात् राजा )

प – प्रतीक है ‘प्रजा’ का। (इंद्र के उपरांत प्रजा )

ध – प्रतीक है ‘धर्म’ का। (प्रजा के उपरांत धर्म की स्थापना हेतु धर्म)

नि – प्रतीक है ‘निराकार’ का। (अंतिम स्वर के अनुसार सभी धर्मो की गहराई में सभी साकार निराकार हो जाते हैं, )

और फिर से प्रारंभ होता है ,‘‘सा’’ यानि पुनः साकार से निराकार तक का चक्र या निराकार से साकार का चक्र।

संगीत सृष्टि में प्रारंभ से ही है, चाहे वह संगीत वादन का हो, कंठ का हो, हृदय का हो, झरने का कल-कल करता संगीत हो, वृक्षों की खरखराहट का स्वर हो, बादलो का नाद हो, हवा का मनमोहक स्वर हो, आवश्यकता है तो इसे सुनने की और सुनकर पहचानने की।

संगीत में ऐसी शक्ति है कि यदि व्यक्ति संगीतमय हो तो उसके व्यक्तित्व, उसके जीवन में आनंद देखा जा सकता है। इतिहास के पन्नों को पलटने पर भी ज्ञात होता है कि सभी राजकुमारों को शस्त्र शिक्षा के साथ-साथ संगीत शिक्षा भी प्रदान की जाती रही है। चाहे वह श्री राम हो, श्री कृष्ण हों, राजकुमार सिद्वार्थ हो (जो बाद में गौतम बुद्ध हुए), लव-कुश हो। जिससेेे कि वे राजनीतिशास्त्र, शस्त्र शिक्षा के साथ-साथ संगीत शिक्षा हासिल कर पृकृति के संगीत को समझ सकें।

.

परिचय :- अभिषेक श्रीवास्तव
पिता : डॉ. संत शरण श्रीवास्तव
निवासी : जबलपुर म.प्र.
पद : आंतरिक अंकेक्षक
संस्थान : शिक्षा मंडल मध्यप्रदेश शाखा जबलपुर
शिक्षा : एम.एस.सी. (सीएस), एम.कॉम., लेखा तकनीशियन, संगीत विशारद


आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने चलभाष पर या गूगल पर www.hindirakshak.com खोजें…🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा जरुर कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com हिंदी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु हिंदी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉🏻hindi rakshak mnch 👈🏻 हिंदी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें … हिंदी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *