रचयिता : मुनव्वर अली ताज
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शब्दाँजली
शब्द को शर्मसार मत करना
शब्द को गुनहगार मत करना
शब्द हो जाए न विमुख तुम से
शब्द का तिरस्कार मत करना
शब्द को संगसार मत करना
शब्द पे अत्याचार मत करना
शब्द संवाद की सदाक़त है
शब्द से व्याभिचार मत करना
शब्द से झूटा प्यार मत करना
शब्द से धोका यार मत करना
शब्द सद्भावन का हामी है
शब्द को दाग़दार मत करना
शब्द को मनमुटाव मत देना
शब्द को भेद-भाव मत देना
राम अपना है रब पराया है
शब्द को ये सुझाव मत देना
शब्द को तन से प्यार कर लेना
शब्द को मन से प्यार कर लेना
शब्द देगा तुम्हें अमर जीवन
शब्द को धन से प्यार कर लेना
शब्द का धर्म भी नहीं होता
शब्द का कर्म भी नहीं होता
सच है लेकिन ये सच नहीं प्यारे
शब्द का मर्म भी नहीं होता
शब्द पे दिल निसार कर देना
शब्द पे जाँ निसार कर देना
शब्द को काव्य की दुआ देकर
शब्द को शानदार कर देना
शब्द का आम राज कर देना
शब्द को काम काज कर देना
शब्द को साम्य की दिशा देकर
शब्द का शुभ समाज कर देना
जब क़लम, ताज, खाकसारी से
बारगाहे सुखन में झुकता है
तब कहीं सरज़मीने काग़ज़ पर
शब्द का शुभ अनाज उगता है
शत शत करु प्रणाम।
लेखक का परिचय :- मुनव्वर अली ताज उज्जैन
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