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कन्या

निरुपमा मेहरोत्रा
जानकीपुरम (लखनऊ)
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दुर्गा नवमी की पूजा कर सलिला अपने बंगले के गेट पर खड़ी होकर कन्या पूजन के लिए लड़कियों की प्रतीक्षा करने लगी। पास पड़ोस में सभी ने अपनी बच्चियों को भेजने के लिए हामी भरी थी, पर अब जाने क्या हो गया सबको, फोन पर भी कोई न कोई बहाना बना दिया। परेशान सलिला पूजा की ज्योत में घी भरकर फिर बाहर गेट पर आकर खड़ी हो गई।
उसकी तेरह साल की बेटी नीली अपनी मां की उलझन को देख रही थी, उसी समय करीब सात साल की गन्दी सी लड़की, बेतुके कपड़े पहने गेट पर बाहर से आवाज़ देकर बोली, “आंटी, कन्या खिलाएंगी?”
सलिला बुरा मुंह बनाकर नीली से बोली, “देखो, सुबह सुबह कैसी गरीब भिखारन भीख मांगने आ गई है!”
लड़की फिर से बोली, “आंटी कुछ खिला दो।”
नीली मां के चेहरे की परेशानी देखकर बोली, “मम्मी, अभी तक कोई कन्या नहीं आयी है, तुम इसी को पूज लो।”
सलिला बेटी को डांटकर बोली, “कैसी बात कर रही हो नीली, ये कितनी गन्दी है और इसके कपड़े तो देखो!”
नीली ने फिर सुझाव दिया, “मम्मी सुनो, कल ही तुमने मेरे छोटे कपड़े अलग किए हैं, उनमें से एक इसको पहनाकर पूज दो।”
बेटी की सलाह से सलिला के चेहरे का भाव बदल गया, जैसे उसका वशीकरण हो गया हो। वह बिना किसी प्रतिवाद के राजी हो गई, फिर तो नीली ने गन्दी लड़की को गेट खोलकर अंदर बुला लिया। उसने दौड़कर अंदर से साबुन लाकर लड़की से नल के नीचे हाथ, पैर और मुंह धोने को कहा। मुंह धोकर लड़की का सांवरा चेहरा चमकने लगा। नीली ने उसको कंघा देकर बाल झाड़ने को कहा।
सलिला को छोटे कपड़ों में एक लहंगा और चुन्नी मिल गई जिसे बाहर लाकर लड़की को देकर उसके कपड़े बदलवाए। गरीब लड़की का रूप एकदम बदल गया था। सलिला ने उसके माथे पर बिंदी लगाकर हलुआ, पूरी और चना उसके आगे रख दिया। लड़की दो पूरी खाकर तृप्त हो गई और सलिला कन्या पूजन संपन्न कर भाव विभोर हो गई। वह कन्या को प्रसाद और रुपए देकर गेट के बाहर तक छोड़ने आई।
कन्या लहंगा पहने धीरे-धीरे जा रही थी, पर जाते जाते अमीर-गरीब का भेद मिटा गई थी।

परिचय :- निरुपमा मेहरोत्रा
जन्म तिथि : २६ अगस्त १९५३ (कानपुर)
निवासी : जानकीपुरम लखनऊ
शिक्षा : बी.एस.सी. (इलाहाबाद विश्वविद्यालय)
साहित्यिक यात्रा : दो कहानी संग्रह प्रकाशित। अभिव्यक्ति साहित्यिक संस्था द्वारा प्रति वर्ष प्रकाशित कहानी संकलनों में कहानियां प्रकाशित। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कहानी, कविता, यात्रा वृत्तांत तथा लेख प्रकाशित। श्री ईशोपनिषद तथा श्री केनोपनिषद की सरल काव्य प्रस्तुति।
सम्प्रति : भारतीय स्टेट बैंक से सन् २०१३ में सेवानिवृत्ति के पश्चात स्वतंत्र लेखन एवं सामाजिक संस्था ‘श्री महिला शक्ति मंडल फाउंडेशन लखनऊ’ के माध्यम से सामाजिक सरोकारों से जुड़ाव।
सम्मान : लोपामुद्रा सम्मान- २०१८
घोषणा पत्र : यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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