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विरह का रोग

रजनी गुप्ता “पूनम”
लखनऊ

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मुझको देखो आज फिर, लगा विरह का रोग।
पिय बिन सूना साज फिर, लगा विरह का रोग।

जोगन बनकर फिर रही, गाऊँ विरहागीत,
भूल गई सब काज फिर, लगा विरह का रोग।

बिसरी जग की रीत सब, खुद से हूँ अनजान।
छुपा रही सब राज फिर, लगा विरह का रोग।

प्रियतम जब से दूर हैं, बिखरा सब शृंगार।
हृदय पड़ी है गाज फिर, लगा विरह का रोग।

‘रजनी’ तेरी याद में, तड़प रही दिन-रात।
भूल गई सब लाज फिर, लगा विरह का रोग।।

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परिचय : नाम :- पूनम गुप्ता
साहित्यिक नाम :- रजनी गुप्ता ‘पूनम’
पिता :- श्री रामचंद्र गुप्ता
पति :- श्री संजय गुप्ता
जन्मतिथि :- १६जुलाई १९६७
शिक्षा :- एम.ए. बीएड
व्यवसाय :- गृहणी
प्रकाशन :- हिंदी रक्षक मंच इंदौर म.प्र. के  hindirakshak.com पर रचना प्रकाशन के साथ ही कतिपय पत्रिकाओं में कुछ रचनाओं का प्रकाशन हुआ है
सम्मान :- समूहों द्वारा विजेता घोषित किया जाता रहा है। दो बार नागरिक अभिनंदन पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। मंचों पर काव्य-पाठ व लघुकथा का पाठन करती रहती हूँ। सांस्कृतिक एवं सामाजिक योगदान हेतु सम्मान-पत्र प्रदान किया गया है। विद्यालय के समय भी अनेक पुरस्कार मिले हैं।
रचना की विधा :- अथिकतर दोहा सृजन, छंदमुक्त कविताएँ, मुक्तक, दोहा, गजल, लघुकथा, संस्मरण आदि…. सर्वाधिकार सुरक्षित


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