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विरह वेदना

निर्मल कुमार पीरिया
इंदौर (मध्य प्रदेश)

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(राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता लेखन प्रतियोगिता विरह वेदना में सर्वश्रेठ रही कविता)

दीप-बाती बन, जल रही मैं, तकती सूनी भीतो को,
प्रीत-दीप, रौशन कर बैठी, तकती बरबस राहों को…

विरह-अग्न में, तप रही, हुक उठती, हिय-विकल हैं,
निर्झर-नैना, तोड़े बंध सारे, श्वासों का, आवेग प्रबल हैं…

अस्त-बिंदु हैं, व्यस्त-वसन हैं, सुधि रही ना, तन मन की,
उलझी अलकें, स्थिर पलकें, ताक रही,छवि साजन की…

कैसे कह दु ? क्या तुम मेरे हो, बानी को मैं, तरस रही,
तपता तन हैं, भीगा मन है, बिन सावन मैं, बरस रही…

अरमानों की, सेज सजाएं, भूलि-बिसरी, महकाए रही,
कंपित अधरों से, गीत मिलन के, होले से, बुदबुदाए रही…

हर आहट पर, आस जगे हैं, तरसु भुज वलय, समाने को
सुरभित-मुकलित, यौवनं चाहें, रंग “निर्मल” घुल जाने को…

पल पल, हर पल,छलक रही, मधु-ऋतु, चंचल यौवन की,
दरस दिखा दे, अंग लगा ले, बीत रही हैं, बेला जीवन की…

राह बुहारु-पग पखारु, ले बलैया, छुपा लु, मन आँगन में,
विरह वेदना, दूर करो अब, आ जाओ भी, ऋतु सावन में.

परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया
शिक्षा : बी.एस. एम्.ए
सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि.
निवासी : इंदौर, (म.प्र.)
शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं


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