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गावों की गलियां

रमेश चौधरी
पाली (राजस्थान)

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शहर को छोड़ कर
आज आया हूं
गावों की गलियों में।

गलियों की दीवारों को देख कर,
बचपन के शरारती दिनों की यादें ताजा हो गई हैं।

गलियों को देखकर याद आ गए वो दिन,
जब में नंगे पाव भागता था
इन गलियों में,
शोर मच जाता था इन अरियो में,

जब मां डंडा लेकर भागती थी पीछे,
कान पकड़कर लाती थी नीचे,
जब चलता हूं गलियों में
तब आती है महक इन गलियों की
तब दिल रोता है जोर से
क्यू चला गया मैं गावों की गलियों को छोड़ कर
इन शहरों की आबाद गलियों में।

शहर को छोड़ कर
आज आया हूं गावों की गलियों में।

खेतो में लहराती इन फसलों को देखकर
मानो स्वर्ग का एसास हो रहा हो,
रग बिरंगी उड़ती हुई तितलियां,
मानो स्वर्ग की परियों का एसासा करा रही हो
आज दिल बोहत खुश है
मैने शहरों की आबाद गलियों को छोड़ कर
गावों की गलियों में आया हूं।

परिचय :- रमेश चौधरी
निवासी : पाली (राजस्थान)
शिक्षा : बी.एड, एम.ए (इतिहास)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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