डॉ. पंकजवासिनी
पटना (बिहार)
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गांँव: सोंधी-सोंधी माटी की खुशबू!
सुरम्य हरियाली बिखरी चहुँओर भू!!
भोर की लाली क फैला है वितान!
कंधे पर हल रखकर चल पड़ा किसान!!
शीतल सुरभित मंद पवन मन हरसाय!
प्रदूषण मुक्त वातावरण अति भाय!!
अमराई में कूके विकल कोयलिया !
कामदेव-बाण-सी आम्र मंजरियांँ !!
अनगिन सरसिज विहंँस रहे हैं ताल में!!
सारा गांँव गुँथा सौहार्द्र-माल में!!
खेतों-झूमे शस्य-श्यामल बालियाँ !
खगकुल-कलरव से गुंजित तरु डालियाँ!!
पक्षियों का कूजन हर्षित करता हृदय!
बैलों की घंटियों की रुनझुन सुखमय!!
नाद पर सहलाता होरी बैलों को!
चाट रही धेनु मुनिया के पैरों को!!
चूल्हे पर पकती रोटियों की महक!
सबके मुखड़े पर पुते हर्ष की चमक!!
यहांँ सभी उलझन सुलझाती चौपाल!
हर बाला राधा हर बालक गोपाल!!
मर्द गाँव का सिर पर पगड़ी सजाए!
और आंँचल में हर धानी मुस्काए!!
लज्जा की लुनाई में नारी लिपटी!
संबंधों में ऊष्मा सुरक्षित दीप-सी!!
शिशु को अमिय पिलाय माँ अंचल ढाँके!
जननी गरिमा सीखे पुर यहांँ आके!!
अपनत्व का सुख है यहांँ पर अपरिमित!
नहीं नगरों से जन स्वयं में सीमित!!
बैठ बरगद पीपल नीम की सुख छांँव!
मन की बतियांँ नित करता सारा गांँव!!
सांँझी संस्कृति की संँभाले विरासत!
आज भी गांँव! जिसकी नगरों मँ सांँसत!!
मानवीय संवेदनाओं से भरा इ!
भारतीय संस्कृति से गहरे जुड़ा इ!!
संस्कारों को यहांँ ना लील जाती…
नागरी सभ्यता के धीमे जहर सी…
गांँव में न आज भी प्रेम का खात्मा!
नेह से महमहा रही यहाँ आत्मा!!
विकल नागर पाता शांति यहांँ आके!
ग्राम घुंँघट भारतीय संस्कृति झांँके!!
गाँव में ही भारत की आत्मा बसी!
आडंबरहीन देश की सादगी लसी!!
परिचय : डॉ. पंकजवासिनी
सम्प्रति : असिस्टेंट प्रोफेसर भीमराव अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय
निवासी : पटना (बिहार)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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