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अपने विवेक का इस्तेमाल करें

अतुल भगत्या तम्बोली
सनावद (मध्य प्रदेश)

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राधा बहुत ही सुशील एवं गुणवान कन्या थी जब वह रघुवीर जी के घर उनके छोटे बेटे की वधु बनकर आई थी। लोग उसकी तारीफ करते ना थकते थे। कोई उससे गुणवंती कहता तो कोई सुकन्या। दोनों बहुओं की तुलना होने लगती कि जैसी बड़ी बहू है वैसी ही छोटी भी। हर कोई रघुवीर जी को यही कहता कि उन्हें जो बहुएँ मिली है लाखो में एक है। ऐसी बहुएँ तो सिर्फ किस्मत वालों को मिलती है। बड़ी बहू के चाल चलन व व्यवहार देखकर राधा भी हर व्यक्ति का बराबर सम्मान करती थी चाहे उसके परिवार के हो या कोई अनजान व्यक्ति। दोनों के पति भी बिल्कुल उन्हीं की तरह थे। ऐसा लगता था मानो दोनों के उनकी पत्नियों से पूरे छत्तीस के छत्तीस गुण मिलते हो। अनगिनत संपत्ति खेत-खलियान, धन-दौलत सबकुछ होने के बावजूद वह कभी किसी से गलत व्यवहार या हीन भावना नही रखता था। अहंकार उससे कोसों दूर था। समय बीतता चला गया। राधा अपने मोहल्ले की औरतों से मिलने जुलने लगी। कुछ औरतें तो अच्छी थी पर कुछ औरतें सिर्फ एक दूसरे की निंदा करती रहती। कुछ औरतों को रघुवीर जी के घर की सुख शांति रास नही आ रही थी। धीरे-धीरे राधा को बड़ी बहू के खिलाफ भड़काने लगी। कभी उसे सम्पति में अपना हिस्सा लेने के लिए कहती तो कभी सारी सम्पत्ति को को बड़ी बहू द्वारा हड़पने की बात कहती। राधा का दिमाग पूरी तरह से बटवारे के लिए तैयार हो चुका था। कभी बड़ी बहू को ताने देती तो कभी उसके पति को अपने भाई के खिलाफ करने का प्रयास करती। राधा का पति समझ चुका था कि ये मोहल्ले की महिलाओं की संगत का असर है। उसने ये बात अपने पिता से कही। रघुवीर एक इज्जतदार व बुद्धिमान व्यक्ति था। उसने दोनों बेटों एवं बहुओं को बुलाया और कहा कि वह सम्पति का बटवारा करना चाहता है। बड़ी बहू को इस बात से दुख हुआ पर राधा मन ही मन अपनी योजना के पूरे होने की खुशी मना रही थी। जब बटवारे की बात आई तो पहला हिस्सा माँगने के लिए बड़ी बहू से कहा गया परंतु बड़ी बहू ने ये कहकर बात आगे बढ़ा दी कि पहला हिस्सा छोटी माँगे तो अच्छा रहेगा। छोटी बड़ी खुश थी उसने सबसे पहले खेत-खलियान व मकान के हिस्से की बात रखी। उसे उसके हिस्से का देना तय हो गया।अब बारी थी बड़ी बहू की तो उसने पहले कहा कि पिताजी,देवरजी व राधा हमारे साथ रहे परिवार अलग न हो । मैं अपने हिस्से की सारी संपत्ति भी छोटी को देना चाहती हूँ। यदि हमारा परिवार धन दौलत के कारण टूट जाएगा तो सालों में कमाई हुई इज्जत एक दिन में पानी की तरह बह जाएगी जग हँसी होगी वो अलग। इसलिए मेरा यह फैसला है कि सबकुछ छोटी के नाम कर दिया जाय व इस घर की इज्जत को मेरे नाम कर दिया जाय। इतना सुनते ही छोटी की आँखों से आँसू के झरने बहने लगे। उसने अपनी गलती के लिए माफी माँगी। उसे ये अहसास हो गया कि किसी की बातों में न आकर स्वयं के विवेक से काम लेना कितना जरूरी हो जाता है। घर तोड़ने के लिए तो कई लोग होते है लेकिन जोड़े रखने के लिए स्वयं का विवेक अतिआवश्यक है।

परिचय :- अतुल भगत्या तम्बोली
निवासी : सनावद, जिला खरगोन (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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