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बेबस पंछी ना कट जाएं

अख्तर अली शाह “अनन्त”
नीमच
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चीनी मांझे हत्यारे हैं,
उन्हें कदापि ना अपनाएं।
याद रखें चीनी मांझों से,
बेबस पंछी ना कट जाएं।।

आज मकर संक्रांति है तो,
तिल गुड़ के हम लड्डूखाएं।
गुल्ली दंडा खेलें या फिर,
मनचाही हम पतंग उड़ाएं।।
ध्यान रखें पर दाना लाने,
पंछी जो आकाश में जाएं।
उनके जीवन की हम रक्षा,
करें अपाहिज नहीं बनाएं।।
जो मांझे विपदा बरसाते,
घर बच्चे भूखे मर जाते।
क्यों गुणगान करें उनका हम,
क्यों खरीद के हम ले आएं।।
चीनी मांझे हत्यारे हैं,
उन्हें कदापि ना अपनाएं।
याद रखें चीनी मांझों से,
बेबस पंछी ना कट जाएं।।

पौष मास में मकर राशि में,
जब सूरज आ जाता लोगों।
फसलों का त्योहार पर्व ये,
घर-घर रंग दिखाता लोगों।।
खिचड़ी पोंगल ये कहलाता,
लोहड़ी नाम सुहाता लोगों।
पूजा की जाती प्रकाश की,
जीवन गीत सुनाता लोगों।।
देसी मांझे अपने मांझे,
उनपे ही विश्वास जताकर।
रंग बिरंगी उड़ा पतंगें,
हम नभ में बेशक इठलाएं।।
चीनी मांझे हत्यारे हैं,
उन्हें कदापि ना अपनाएं।
याद रखें चीनी मांझों से,
बेबस पंछी ना कट जाएं।।

दानपर्व ये दान करें हम,
ये मन में उत्साह जगाता।
भांति-भांति के नामों से ये,
दुनिया में पहचाना जाता।।
हम उसके आभारी लोगों,
जो है “अनंत” सुख का दाता।
परमपिता की अनुकंपा से,
इसका रहा निकट का नाता।।
उसके आशीषो का शुभदिन,
आया है अपने द्वारे तो।
धरती से नभ तक खुशियों के,
इस दिन जब परचम फहराएं।
चीनी मांझे हत्यारे हैं,
उन्हें कदापि ना अपनाएं।
याद रखें चीनी मांझों से,
बेबस पंछी ना कट जाएं।।

परिचय :- अख्तर अली शाह “अनन्त”
पिता : कासमशाह
जन्म : ११/०७/१९४७ (ग्यारह जुलाई सन् उन्नीस सौ सैंतालीस)
सम्प्रति : अधिवक्ता
निवासी : नीमच जिला- नीमच (मध्य प्रदेश)


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