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दो रास्ते

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रचयिता : विजयसिंह चौहान

सोलह १७ बरस की उम्र में बंधन और रेखा की नजरें मिली थी। उनदिनों गर्मी की छुट्टियों के मायने , मौज मस्ती और अल्हड़पन के बीच रोटा- पानी खेलते-खेलते बंधन के दिलो-दिमाग में प्यार की रेखा कब उभर आई, पता ही ना चला ।
आसमानी कलर की फ्रॉक में गहरे फूल रेखा पर खूब जचते थे। प्रेम की कोपल परवान चढ़ रही थी वही इजहार न कर पाने के कारण दोनों का घरोंदा कहीं और बस गया । पुराना समय था इसलिए कुछ इजहार करना दोनों के लिए नामुमकिन सा था । मन मसोसकर सुनहरी यादें दोनों के दिलों में  धड़कती रही।
घर गृहस्थी और बच्चों की परवरिश में २० सावन कैसे गुजर गए मालूम ही ना चला मगर आज भी बारिश की बूंद झरते बालों की याद मैं भिगो दिया करती है। सोशल मीडिया ने जैसे-तैसे मुलाकात करा दी। आभासी दुनिया (मोबाइल ) से वास्तविक धरातल परआने में भी दोनों को बरसो लग गए काफी समय बाद दिलों की धड़कन एक हुई, दोनों मिले, पुरानी यादों को टटोलते, यादों को सीचते हुए, एक पल के लिए विचार आया कि देर से ही सही चलो नया सफर शुरू करते है, तभी रेखा ने कहा कि हम बीते समय मे लोट भी नही सकते और नया घर बना भी नही सकते।
चिंता और मिलन की बारीक रेखाओं के मंथन पश्चात बंधन ने कहा, हा बात तो सही है …. घरौंदा बनाने में हमे २० साल लगे हैं और दो पल में सबकुछ बिखर जाएगा , २ घर तबाह हो जाएंगे, लिहाजा बंधन और  रेखा, पवित्र रिश्ते की सुनहरी यादों की अंगुली थामे चल दिए अपने अपने घरों की ओर ……

लेखक परिचय : विजयसिंह चौहान की जन्मतिथि ५ दिसम्बर १९७० जन्मस्थान इन्दौर (मध्यप्रदेश) है, इसी शहर से आपने वाणिज्य में स्नातकोत्तर के साथ विधि और पत्रकारिता विषय की पढ़ाई की, आप सामाजिक क्षेत्र में गतिविधियों में सक्रिय हैं, वहीं स्वतंत्र लेखन, सामाजिक जागरूकता, के साथ साथ समाज सेवा भी करते हैंl
लेखन में आपकी विधा-काव्य, व्यंग्य, लघुकथा और लेख हैl आपकी उपलब्धि यही है कि, उच्च न्यायालय (इन्दौर) में अभिभाषक के रूप में सतत कार्य तथा स्वतंत्र पत्रकारिता जारी है। हाल ही में आपको डॉक्टर एसएन तिवारी स्मृति सम्मान समारोह में साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए सम्मानित भी किया गया है।


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