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ढाई आखर

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आशीष तिवारी “निर्मल”
रीवा मध्यप्रदेश

समझ ना पाया खुद को
दर्द सभी मैं सहता हूँ,
तुमने चकनाचूर किया
अब भी तुम पे मरता हूँ।

आराध्य समझ बैठा तुमको
उम्र तुम्हारे नाम किया
तुमको चाहा तुमको सोचा
ना कोई दूजा काम किया।

ढाई आखर के पंडित ने
कितना नाच नचाया है
सूखे मन के मानसरोवर में
बरखा ने प्यास बढ़ाया है।

जुल्म सितम मुझपे करते
फिर भी लगते प्यारे थे
दुश्मन से भी बढ़के निकले
तुम तो मीत हमारे थे।

भूले भटके रह-रह कर के
मैं इतना याद आऊंगा
भर ना सकेगा कोई जिसे
उस जगह छोड़ के जाऊंगा।

लेखक परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल वर्तमान समय में कवि सम्मेलन मंचों व लेखन में बेहद सक्रिय हैं, अपनी हास्य एवं व्यंग्य लेखन की वजह से लोकप्रिय हुए युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल की रचनाओं में समाजिक विसंगतियों के साथ ही मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण, भारतीय ग्राम्य जीवन की झलक भी स्पष्ट झलकती है, इनकी रचनाओं का प्रकाशन एवं प्रसारण विविध पत्र-पत्रिकाओं एवं दूरदर्शन- आकाशवाणी के विविध केंद्रों से निरंतर हो रहा है। वर्तमान समय पर हिंदी और बघेली के प्रचार-प्रसार में जुटे हुए हैं।


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