Monday, December 23राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

सच्चा साथी

राकेश कुमार तगाला
पानीपत (हरियाणा)

********************

“छोड़ेंगे ना हम तेरा साथ, ओ साथी मरते दम तक। रेडियो पर यह गीत सुनकर उमेश एकदम चौक गया। साथी मरते दम तक, खुद भी गुनगुनाने लगा। रीटा की आवाज सुनकर, वह थोड़ा हिचक गया और चुप हो गया। नहीं-नहीं गा लो गीत अच्छा है। आखिर मुझें आज भरोसा तो हुआ कि तुम मरते दम तक मेरा साथ नहीं छोड़ोगे, पर वह चुप था।
ऑफिस पहुँचते ही, नमस्ते करने वालों की होड़ सी लग गई। लगती भी क्यूँ ना, वह अपने ऑफिस में उच्च पद पर आसीन जो था? वह अपनी कुर्सी पर लगभग पसर सा गया। उसे ऐसा लग रहा था, कुछ गीत हमारी जिंदगी में कितना ऊँचा स्थान रखते हैं। कुछ गीत हमारे लिए प्रेरणा स्रोत होते हैं, कुछ सिर्फ सुख-दुख व्यक्त करने का जरिया मात्र।
रीटा आज मन ही मन चहक रही थी कि उमेश ने उसका महत्व समझा तो सही, चाहे उसने अपनी भावनाएं व्यक्त करने के लिए एक गीत का ही सहारा लिया हो। पर क्या फर्क पड़ता है इस सबसे? वह हमेशा चुपचाप रहता है पर आज ऐसा क्या हुआ जो वह इस गीत के साथ अपनी भावनाएं व्यक्त कर रहे थे? फोन की घंटी बज रही थी, घंटी बजाने की आवाज सुनकर रीटा लगभग दौड़ती हुई फोन तक पहुँची। फोन पर उमेश ही थे, वह उसकी आवाज सुनकर बहुत खुश हुई। आज शाम को मैं देर से घर आऊंगा। तुम खाना खा लेना, मेरा इंतजार ना करना। वह बड़ी रुआँसी ही गई। पर उसके लिए यह कोई नई बात नहीं थी। उमेश अक्सर बाहर से ही खाकर आते थे।
चपरासी: सर- आपके लिए कॉफी लाऊं। हाँ, मोहनलाल एक कड़क काफी, पर इससे पहले वह कुछ बोलता चपरासी ने ही कह दिया शुगर कम, सर। मुझे पता है आप शुगर कम लेते हैं। मेरे ऑफिस में सभी कर्मचारी मेरी आदतों से भली-भांति परिचित थे।
घर के सामने बगीचे में बैठी रीटा शीतल हवा को अपने चेहरे पर महसूस कर रही थी। असीम आनंद से उसका चेहरा खिल रहा था, बाल हवा में लहरा रहे थे। वह माथे पर आए, अपने बालों को बार-बार हटा रही थी। उसे बड़ा आनंद आ रहा था। पेडों के हरे- हरे पत्ते, उनकी सुंदर देखते ही बनती थी। पता नहीं पहले कभी उसे यह पत्ते इतनी सुंदर क्यों नहीं लगे? वह आज इसे महसूस कर रही थी।
साहब कॉफ़ी तैयार है, थैंक्स मोहनलाल। सर और कुछ चाहिए, कॉफ़ी के साथ, बिस्कुट, नमकीन। नहीं-नहीं रहने दो। चपरासी बाहर चला गया। सर भी बड़े मूडी है कभी तो कॉफ़ी के साथ तरह-तरह की नमकीन, बिस्कुट मँगवाते हैं। पर आज सिर्फ कॉफ़ी ही, खैर मुझे क्या, यह बड़े लोगों की बड़ी बातें मेरी समझ में कैसे आएगी? मैं ठहरा एक छोटा आदमी।
कॉफी की चुस्की लेते-लेते उमेश अतीत की यादों में खो गया। कॉलेज के दिन भी कमाल के थे। वह कॉलेज के दिनों के बारे में सोच ही रहा था कि एक धुंधला सा चेहरा उसके सामने आकर ठहर गया। वह गंभीर होता चला गया। शीला की मीठी सी आवाज उसके कानों में पड़ी, उमेश कहाँ भागे जा रहे हो, रुक भी जाओ, मेरे रेल के इंजन। तेरी मालगाड़ी तो पीछे ही रह गई। वह ना चाहते हुए भी मुस्कुरा पड़ा, उसके कदम वहीं रुक गए।
शीला, एक बड़े परिवार की लड़की थी, सभी कहते थे वह अमीर माँ-बाप की बिगड़ैल लड़की है। पर मुझें वह कभी बिगड़ैल नहीं लगी। हाँ, थोड़ी जिद्दी और हंसमुख थी। बात-बात पर खिलखिलाना उसकी आदत थी। हम एक ही क्लास में थे, वह मेरा बड़ा ख्याल रखती थी। जहाँ वह एक अमीर परिवार से थी, मैं उसके विपरीत निम्न-मध्यमवर्गीय परिवार से। उसका चेहरा हमेशा गुलाब की तरह खिला रहता था और मैं हमेशा गंभीर रहता था, चुपचाप उदास। वही कहती थी मेरे लकड़ी के खिलौने कभी हँस भी लिया करो। क्यों हमेशा दिलीप कुमार बने रहते हो?
रीटा का फोन सुनकर, वह चौक पड़ा। क्या हुआ रीटा, सब ठीक है? क्या आज आप घर पर जल्दी आ सकते हो? मेरा मन कर रहा है कि हम दोनों शाम को कहीं बाहर घूमने चले। आज पहली बार रीटा के मुँह से घूमने की बात सुनकर। उमेश हैरान था, पर वह इतना ही बोल सका ठीक है, कोशिश करता हूँ।
वह फिर शीला की यादों में खो गया। शीला ने हमेशा मेरा बढ़-चढ़कर साथ दिया था। किताबे, कपड़े, कॉलेज की फीस तक भरना। सभी तरह की मदद तो वही करती थी। एक सच्चे साथी की तरह, जब भी मेरा मन उदास होता। वह हमेशा कहती, उदास मत रहा करो। तुम जरूर कामयाब होंगे। मुझे पता था वह मेरा बहुत ख्याल रखती थी। उसे जब भी अवसर मिलता, मुझसे चिपक जाती। कई बार मुझे लगा, वह मुझें बहुत प्यार करती है। पर मैं उसे कभी कह नहीं सका। ना ही वह कह सकी। वह हमेशा यही गीत गुनगुनाती थी। छोड़ेंगे ना हम तेरा साथ ओ साथी, मरते दम तक। पढ़ाई पूरी करने के बाद मुझें एक उच्च पद प्राप्त हुआ। बड़ा घर, सब कुछ था, मेरे पास था। शीला नहीं थी, तेज रफ्तार कार ने उसकी जान ले ली थी। जब मुझे पता चला, तो मेरे ऑंसू नहीं रुक रहे थे, आज भी जब उसकी याद आती है तो मेरी आँखें नम हो जाती हैं।
चपरासी: साहब- घर नहीं जाना, तुम चलो। मैं आता हूँ। मैं नम आँखो से घर की तरफ चल पड़ा। घर पर रीटा, लाल साड़ी में मेरा इंतजार कर रही थी। मुझे देखकर गुनगुना रही थी। छोड़ेंगे ना हम तेरा साथ, इससे आगे वह कुछ बोलती। मैंने उसे बाँहों में भर लिया। वह हँसकर बोले उठी, वाह मेरे दिलीप कुमार। मेरे सच्चे साथी।

निवासी : पानीपत (हरियाणा)
शिक्षा : बी ए ऑनर्स, एम ए (हिंदी, इतिहास)
साहित्यक उपलब्धि : कविता, लघुकथा, लेख, कहानी, क्षणिकाएँ, २०० से अधिक रचनाएँ प्रकाशित।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा जरुर कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय  हिंदी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉 👉 hindi rakshak manch  👈… राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें..

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *