डॉ. सर्वेश व्यास
इंदौर मध्य प्रदेश
********************
जिंदगी की उपादोह में व्यक्ति ने अपने आपको इतना उलझा लिया है कि कभी पीछे मुड़कर देखने का मौका ही नहीं मिलता। आजकल व्यक्ति के चिंतन का मुख्य बिंदु है, भविष्य में क्या करना है? कैसे करना है? इस भागा दौड़ी में वह अपने आप को ना जाने कहां छोड़ आया है? जिसे खोजने के लिए उसे समय चाहिए, जो शायद आज उसके पास नहीं है। इसी भागा-दौडी़ और उपादोह बीच अचानक कोरोना आया, लाक डाउन हुआ, गाँव रुक गया, शहर रुक गया, देश रुक गया, विदेश रुक गया और सबसे बड़ी बात मनुष्य रुक गया, हाँ-हाँ मनुष्य रुक गया। जहां यह कोरोना बहुत सारी समस्याएं लेकर आया, वही यह एक अवसर लेकर आया-खोजने का। किसको? अपने आप को और अपनों को। यह अवसर लाया उस यात्रा पर पीछे जाने का, जिस यात्रा के किसी मोड़ पर हम अपने आपको और अपनों को पीछे छोड़ आए थे। मैंने सोचा चलो मैं भी इस यात्रा पर चलू और मैं पहुंचा ९ अगस्त १९९४ शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय देपालपुर के मैदान पर, जहां में अपने दोस्तों के बीच चर्चा कर रहा था कि २० अगस्त को पूर्व प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी की जयंती के उपलक्ष में आयोजित निबंध प्रतियोगिता के लिए विषय से संबंधित सामग्री कहां से जुटाए? तभी मेरे सम्मुख एक दुबला-पतला, साधारण सा दिखने वाला व्यक्ति खड़ा हुआ, चेहरे पर मुस्कान थी, और वाणी मानो अमृत घोल रही हो। कुल मिलाकर एक आकर्षक व्यक्तित्व, उन्होंने आते ही प्रस्ताव रखा इस प्रतियोगिता में विषय से संबंधित सामग्री संग्रहण करने में, मैं आपकी सहायता कर सकता हूं। मैंने उनसे परिचय प्राप्त किया तो वह हमारे विद्यालय की कक्षा बारहवीं के छात्र सुभाष बडगूजर थे, सुभाष यथा नाम तथा गुण, बातचीत में बड़ी ही सुंदर भाषा का प्रयोग करते थे वो। पहली बार दोहे को समझ पाया कि “कोयल किसी को का देत है, कागा का हर लेत मीठी वाणी बोल कर, सबको अपना कर लेत” तय हुआ १३ अगस्त को ८:०० बजे वह मुझे गोवर्धन नाथ मंदिर में स्थित अध्यात्म वाचनालय में ले जाएंगे और सद्भावना से संबंधित साहित्य उपलब्ध करवाएंगे। अगले दिन से १३ तारीख तक विद्यालय में हमारी मुलाकात व सामान्य बातचीत होती रही, सुभाष जी१३ तारीख शाम अचानक मेरे घर आए, और बोले चलो वाचनालय चलना है। उनके साथ मैं वाचनालय गया। उस वाचनालय में गजब का आभामंडल था, एक अदृश्य शक्ति थी, जो अनायास ही आकर्षित कर रही थी। वहां एक व्यक्ति ध्यानस्थ बैठा था। क्या व्यक्तित्व था? एक दिव्य प्रकाश पुंज था उसके चेहरे पर। ऐसा लग रहा था मानो उसके तेज से पूरा वाचनालय शोभायमान हो रहा हो। हट्टा-कट्टा गौर वर्ण शरीर, मंजरी आंखें, गाल भरे-भरे और सिर पर अष्टगंध का तिलक। सुभाष जी उनके पास ले गए और सर कहकर सम्बोधित किया, और मेरा परिचय करवाया। सर ने बताया कि उनका नाम अशोक कुमार शर्मा है और वह चंबल नदी के किनारे स्थित गांव भामा खेड़ा में शिक्षक है। बारिश में नदी में पानी रहता है, अतः वह वहीं रहते हैं और शनिवार, रविवार को देपालपुर आते हैं, इसीलिए वाचनालय केवल शनिवार रविवार को ही खुलता है। बाकी दिनों में जब नदी में पानी नहीं होता है, वह देपालपुर में रहते हैं और देपालपुर से भामा खेड़ा रोज आना-जाना करते हैं, इस कारण वाचनालय रोज खुलता है। इसके बाद उन्होंने सद्भावना से संबंधित साहित्य दिया, और वह लेकर मै घर आ गया । उस रात में पढ़ नहीं पाया लेकिन इन दोनों के बारे में सोचता रहा कि सद्भावना पर निबंध लिखने के लिए शब्दों एवं वाक्यों को एकत्र कर रहा हूं और यह दोनों सद्भावना की प्रतिमूर्ति है। इन दोनों का एक ही लक्ष्य है, युवा पीढ़ी को साहित्य से जोड़ना उनके आत्मबल में वृद्धि करना एवं समाज के युवा को समाज के प्रति उसके उत्तरदायित्व से अवगत कराते हुए उसमें सामाजिक, आत्मिक एवं चारित्रिक गुणों का विकास करना, वह भी बिलकुल निशुल्क साहित्य उपलब्ध करवाकर। शर्मा सर अपने वेतन का एक बड़ा भाग किताबों के क्रय करने पर व्यय करते थे, बस उनकी एक ही इच्छा थी कि बच्चें सत साहित्य पढ़े, लेकिन कई बार बच्चें किताबें ले जाते थे और लौटाने भी नहीं आते थे, इसके लिए भी उन्होंने कभी प्रयत्न नहीं किया। किताबें खरीदना और बच्चों को ज्यादा ज्यादा पढ़ने के लिए प्रेरित करना, उनका प्रमुख लक्ष्य था। समय के साथ मैं अध्यात्म वाचनालय, श्री अशोक शर्मा एवं सुभाष जी से जुड़ता गया। इसी दौरान मुझे ज्ञात हुआ कि सुभाष जी खटीक समाज से आते हैं एवं उनकी बाजार में मांस मटन आदि के विक्रय की दुकान है, मुझे थोड़ा असहज लगा। बाद में मुझे ज्ञात हुआ सुभाष जी ना तो दुकान पर जाते हैं और ना ही मांसाहार अंडे आदि चीज ग्रहण करते हैं। इस बात के लिए उनके घरवाले उनसे नाराज भी थे, लेकिन सुभाष जी ने उनकी चिंता नहीं करते हुए अपने आपको उन सारी चीजों से दूर रखा। जिस दिन उनके घर पर मांसाहार अंडे आदि चीजें बनती थी, उस दिन वह चार रोटी जेब में रखकर बाजार लाते थे और किसी भी होटल में कचोरी की चटनी लेकर उसमें सेव मिलाकर बाजार में खाते थे। इस बात से सभी लोग परिचित थे, इसीलिए उनके प्रति सबके मन में गहरी आस्था थी। जब मुझे यह ज्ञात हुआ तो उनके प्रति मेरे मन में श्रद्धा और बढ़ गई। सर ने मुझे समझाया कि जिस प्रकार मीराबाई की जिज्ञासा शांत करने हेतु रैदास हुए, ऐसे ही नगर की युवा पीढ़ी को अध्यात्म से जोड़ने हेतु सुभाष जी हुए। उस समय नगर में जाति प्रथा को मानने वाले लोग भी थे, लेकिन सुभाष जी की पहुंच नगर के अति विशिष्ट नागरिकों के चूल्हे चौके तक थी, जो कि यह बात सिद्ध करती थी कि व्यक्ति जाति से नहीं कर्म से महान बनता है। गुणाः सर्वत्र पूज्यते। आदरणीय सर एवं सुभाष जी दोनों ने मिलकर नगर की युवा शक्ति को उर्जा से ओतप्रोत करने का कार्य किया। यह दोनों केवल मार्ग दर्शक बनकर रास्ता ही नहीं दिखाते थे बल्कि आर्थिक सहायता एवं सुभाष जी तो शारीरिक सहायता भी प्रदान करते थे। किसी के यहां शादी हो या कुछ और कार्यक्रम, सुभाष जी अपनी टीम के साथ सदैव तैयार रहते थे। नगर में गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित वार्षिक पत्रिका कल्याण की स्थापना करनी हो या नगरवासियों खासकर युवा पीढ़ी में एक दूसरे के प्रति सद्भाव एवं सद्भावना जागृत करनी हो, यह दोनों सदैव प्रयास करते रहते। इन दोनों ने नगर में आध्यात्मिकता से ओतप्रोत वातावरण तैयार किया। लगभग २ वर्ष पूर्व आदरणीय अशोक कुमार शर्मा जी रूपी सूक्ष्म ज्योति उस परम ज्योति में विलीन हो गई। सुभाष जी इंदौर में हैं एवं अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए आत्म कल्याण हेतु प्रयासरत है। आज मैं जो भी भाव व्यक्त कर पा रहा हूं, वह इन दोनों के सामूहिक प्रयत्नों का प्रसाद है। कहते हैं मन के भावों को बांध पाना बहुत कठिन है और उन्हें शब्दों का आकार देना उससे भी कठिन है। फिर भी यह साहस इसलिए कर पा रहा हूं कि अतीत के झरोखे से उन दृश्यों को समाज के सम्मुख रखा जाए जो कि प्रेरित करते हैं कि दृढ़ संकल्प एवं सदभावना से कोई कार्य किया जाए तो परिवर्तन संभव है। ये मानवता के प्रति समर्पित सच्चे मित्र हैं और सच्ची इनकी मित्रता है। ऐसे मित्र सभी को प्राप्त हो, इन्हीं शुभेच्छाओं के साथ …….
परिचय :- डॉ. सर्वेश व्यास
जन्म : ३० दिसंबर १९८०
शिक्षा : एम. कॉम. एम.फिल. पीएच.डी.
लेखन विधा : व्यंग्य, संस्मरण, कविता, समसामयिक लेखन
व्यवसाय : सहायक प्राध्यापक
निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने चलभाष पर या गूगल पर www.hindirakshak.com खोजें…🙏🏻
आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा जरुर कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु हिंदी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉🏻hindi rakshak manch👈🏻 … हिंदी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें..