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विषधर विषहीन श्रेष्ठ नहीं होता

भारत भूषण पाठक देवांश
धौनी (झारखंड)

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मुक्तक लेखन का प्रयत्न वीर रस में
कुल मात्रा भार १६ रखने का प्रयत्न
विधान:-१,२ व ४थी पंक्ति समतुकान्त,३री अतुकान्त:-

मुक्तक १:-
विषधर विषहीन श्रेष्ठ नहीं होता।
नखहीन भला क्या सिंह भी होता।
रहे गरल जबतक शेष विषधर में।
फुँफकार तभी तो वो डरा पाता।

मुक्तक २ः-
हे मेरी सुताओं विषधर बनो।
नखयुक्त सिंह अब भयंकर बनो।
सरलता अब यहाँ आवश्यक नहीं।
महाभयंकर तुम प्रलयंकर बनो।

मुक्तक४:-
स्मरण रहे अब कृष्ण नहीं आते।
पापियों से आज सभी भय खाते।
आज पूजे जाएं शैतान यहाँ।
देख व्यभिचार प्रभु आज शर्माते।

मुक्तक५:-
उठो चूड़ी छोड़ तुम कतार धरो।
स्वयं का कष्ट आज तुम स्वयं हरो।
हे वीर सुताओं तोड़ दो चुप्पी।
वार सहो नहीं तुम अब वार करो।

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परिचय :- भारत भूषण पाठक ‘देवांश’
लेखनी नाम – तुच्छ कवि ‘भारत ‘
निवासी – ग्राम पो०-धौनी (शुम्भेश्वर नाथ) जिला दुमका (झारखंड)
कार्यक्षेत्र – आई.एस.डी., सरैयाहाट में कार्यरत शिक्षक
योग्यता – बीकाॅम (प्रतिष्ठा) साथ ही डी.एल.एड.सम्पूर्ण होने वाला है।
काव्यक्षेत्र में तुच्छ प्रयास – साहित्यपीडिया पर मेरी एक रचना माँ तू ममता की विशाल व्योम को स्थान मिल चुकी है काव्य प्रतियोगिता में।

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