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नव भोर की ओर

निर्मल कुमार पीरिया
इंदौर (मध्य प्रदेश)

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चमक रहा वो, देख! शीर्ष,
हैं ज्योत्सना मुसकाई,
महक रहा हैं धीर मेघपुष्प,
चल वैतरणी पार लगाई…
मचल उठा मन मयूर सा,
नयन निहारें, विहंगम दृश्य,
वारिधर भी रहे मचल हैं,
थिरके अर्श, अंशु अदृश्य…
मस्ती में झुमें हैं, तरुध्वज,
जल-थल चर, विहंग सारे
झुम रही सँग, मंद समीरण,
तृण, टीप “निर्मल” पे वारे …
बिखर रही, रौशनी राहों में,
नई उमंगें सँग भर बाहों में,
तज तिमिर, बन नई चमक,
जा निकल सँग नई राहो में

उपमाएँ : शीर्ष-आसमा/ज्योत्सना-चाँदनी/धीर-शांत/मेघपुष्प-जीवन,जल/वैतरणी-ब्रह्म नदी/वारिधर-मेघ/अर्श-नभ/अंशु-किरण/तरुध्वज-ताड़,वृक्ष/चर-प्राणी विहंग -पँछी/समीरण-वायु/तृण,टीप-घास से शाख तक

परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया
शिक्षा : बी.एस. एम्.ए
सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि.
निवासी : इंदौर, (म.प्र.)
शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं


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