बाल साहित्य : आज का सच
रचयिता : वन्दना पुणतांबेकर
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आधुनिकता की दौड़ में भाग रहाआज का बचपन मॉल, गेमज़ोन से प्रभावित आज के बच्चे उन्हें नैतिक मूल्यों की कोई बात समझ नहीं आती। दस साल का कार्तिक भी हर रविवार को पापा के साथ बाहर घूमने जंक फूड खाने कि जीत करता। बेचारा इकलौता है, तो हर संडे उसका प्रॉमिस मम्मी-पापा खुशी-खुशी करते। गर्मी की छुट्टियों में दादा जी जब घर आए तो उन्होंने देखा की कार्तिक थोड़ा होमवर्क करने के बाद सारा टाइम मोबाइल पर गेम खेलता रहता। मम्मी- पापा ऑफिस चले जाते। दादा जी से थोड़ी बहुत बातचीत की फिर वह मोबाइल में लग जाता। शाम को जब कार्तिक की मम्मी आई तो दादा जी ने पूछ लिया, ‘बेटी क्या कार्तिक बाहर खेलने नहीं जाता, सारा समय घर पर ही कम्प्यूटर पर गेम खेलता रहता है। कार्तिक की माँ ने जवाब दिया, “बाहर शाम तक धूप भी तेज होती है। और यहाँ पर उसके उम्र के बच्चे भी कम है। तो घर पर ही ठीक है, आंखों के सामने तो रहता है। ठीक है इसमे कोई बुराई नही है। हर माता-पिता कोअपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर सजग रहना चाहिए। लेकिन क्या इस तरह चौबीस घंटे कम्प्यूटर में लगे रहना कहा कि बात है। कार्तिक ने दादाजी की बात सुनी तो वह भड़क उठा। “क्या दादाजी आप थोड़े दिनों के लिए आये हो, ओर मम्मी को गलत पट्टी पढ़ा रहे हो। “अरे तुम्हारी आँखों पर तो तीन साल पहले से ही चश्मा लगा है। जब तुम हमारी उम्र के होंगे तो ये दुनियाँ कैसे देखोगे। जब यह बात कार्तिक की माँ ने सुनी तो उसे कार्तिक की चिंता सताने लगी। अब आप ही इस समस्या का कोई हल निकाले जिससे कि कार्तिक के कम्प्यूटर की लत छूट सके। कहती हुई वह चाय बनाने किचन में चली गई।
दादा जी ने कार्तिक को बाल साहित्य के कुछ रोचक कॉमिक्स लाकर दिए। पहले तो वह उसे देखना भी नही चाहता था। मीडिया पर हर तरह के काल्पनिक पात्रो के एनिमेटेड कार्टून ज्यादा लुभावने लगते है।इन कॉमिक्स में वो बात कहां। फिर भी दादा जी ने एक घंटा कॉमिक्स पढ़ने की शर्त पर उसे बाग में घूमने ओर आइसक्रीम खिलाने के वादा किया। तो कार्तिक मान गया। और उसे धीरे-घीरे पढ़ने की आदत भी लग गई। और उतनी देर कम्प्यूटर से भी वह दूर रहता। आज के एकल परिवार में बजुर्ग लोग कम होते जा रहे है। तो हमारी इस नई पीढ़ी को सही नैतिक शिक्षा नही मिल पाती। बच्चो को मीडिया के दुष्परिणाम से बचाना है, तो माता-पिता को रोज कुछ समय बच्चो के रुचि अनुसार उनके साथ वक्त गुजरे तो शायद इस मीडिया का बढ़ता बुरा प्रभाव बचपन को अवसाद की दिशा में ले जाने से रोक सके।
परिचय :- नाम:वन्दना पुणतांबेकर
जन्म तिथि : ५.९.१९७०
लेखन विधा : लघुकथा, कहानियां, कविताएं, हायकू कविताएं, लेख,
शिक्षा : एम .ए फैशन डिजाइनिंग, आई म्यूज सितार,
प्रकाशित रचनाये : कहानियां:- बिमला बुआ, ढलती शाम, प्रायचित्य, साहस की आँधी, देवदूत, किताब, भरोसा, विवशता, सलाम, पसीने की बूंद,,
कविताएं :- वो सूखी टहनियाँ, शिक्षा, स्वार्थ सर्वोपरि, अमावस की रात, हायकू कविताएं राष्ट्र, बेटी, सावन, आदि।
प्रकाशन : भाषा सहोदरी द्वारा सांझा कहानी संकलन एवं लघुकथा संकलन
सम्मान : “भाषा सहोदरी” दिल्ली द्वारा
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