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आज की हिन्दी

विजय गुप्ता
दुर्ग (छत्तीसगढ़)
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कछुआ कदमों की चाल कथा,
बचपन से ही जानी है।

नए भारत की हिन्दी प्रथा,
पुल बनी राजधानी है।

तब बचपन का चंदा मामा,
अब चन्द्रलोक यात्रा है।

शोधपरक हिन्दी वृत्तांत में,
भाव शब्द की मात्रा है।

आजादी रण के सहयोगी
साहित्य पात्र पात्रा है।

पुरातन ज्ञान सभ्यता रीति,
बहुत प्रखर निशानी है।

कछुआ कदमों की चाल कथा,
बचपन से ही जानी है।

नए भारत की हिन्दी प्रथा,
पुल बनी राजधानी है।

गति प्रगति चाल सदा दिखती,
वांछित जगह निराली है।

अनेक राज्य संघ क्षेत्र में,
हिन्दी छटा हरियाली है।

अंग्रेजी वर्चस्व के साथ,
हिन्दी प्रेम तो आली है।

जीवन-मूल्य संस्कारों की,
सच पहचान करानी है।

कछुआ कदमों की चाल कथा,
बचपन से ही जानी है।

नए भारत की हिन्दी प्रथा
पुल बनी राजधानी है।

जो यौगिक मौलिक भौतिक है,
सारी दुनिया गूंजा है।

यूनेस्को यूएनओ ने भी,
मान्य हल को खोजा है।

प्रवासी नागरिक संपर्क,
हिन्दी माध्यम सूझा है।

हिन्दी कुशलता पाए कीर्ति,
इनाम वजह बनानी है।

कछुआ कदमों की चाल कथा,
बचपन से ही जानी है।

नए भारत की हिन्दी प्रथा,
पुल बनी राजधानी है।

शेष विशेष अशेष चलन ही,
जनता की अब भाषा है।

कवियों के ओजस्वी उदगार,
राष्ट्र-भाषा आशा है।

आंदोलन में कवि प्रणेता,
भाषा की परिभाषा है।

अनुवाद नहीं संवाद सही,
यह ‘कोविंद’ जुबानी है।

कछुआ कदमों की चाल कथा,
बचपन से ही जानी है।

नए भारत की हिन्दी प्रथा,
पुल बनी राजधानी है।

सोने में मिलावट हिस्सा तो,
शुद्ध सोना नहीं होता।

देखो सत्य में मिथ्या मिश्रण,
वास्तव किस्सा ही खोता।

वर्तनी ध्यान बने सार्थक,
बीज शुद्धता के बोता।

‘आज की हिन्दी’ दशा राह में,
सीख वृत्ति सुहानी है।

कछुआ कदमों की चाल कथा,
बचपन से ही जानी है।

नए भारत की हिन्दी प्रथा,
पुल बनी राजधानी है।

परिचय :- विजय कुमार गुप्ता
जन्म : १२ मई १९५६
निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़

उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग
साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल जी द्वारा प्रशंसा पत्र
काव्य संग्रह प्रकाशन : १ करवट लेता समय २०१६ में, २ वक़्त दरकता है २०१८
राष्ट्रीय प्रशिक्षक : (व्यक्तित्व विकास) अंतराष्ट्रीय जेसीस १९९६ से
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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