गिरकर उठना
रचयिता : मनोरमा जोशी
गिरकर उठना, उठकर चलना
यह काम है संसार का।
कर्म वीर को फर्क न पड़ता,
कभी जीत और हार का।
जो भी होता है घटना क्रम,
रचता स्यंम विधाता है।
आज लगे जो दंड वहीं
पुरस्कार बन जाता हैं।
निशिचत होगा प्रबल समर्थन,
अपने सत्य विचार का,
कर्म वीर को फर्क न पड़ता,
कभी जीत और हार का।
कर्मो का रोना रोने से,
कभी न कोई जीता है,
जो विष धारण कर सकता है,
वह अमृत को भी पी लेता है।
संबल यह विश्वास ही है,
अपने दृढ़ आघार का।
कर्म वीर को फर्क न पड़ता,
कभी जीत और हार का।
लेखिका का परिचय :- श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा-स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र-सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं।विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का प्रकाशन होता रहा है। राष्ट्रीय कीर्ति सम्मान सहित साहित्य शिरोमणि सम्मान और सुशीला देवी सम्मान प्रमुख रुप से आपको मिले हैं। उपलब्धि संगीत शिक्षक,मालवी नाटक में अभिनय और समाजसेवा करना है। आपके लेखन का उद्देश्य-हिंदी का प्रचार-प्रसार और जन कल्याण है। कार्यक्षेत्र इंदौर शहर है। आप सामाजिक क्षेत्र में विविध गतिविधियों में सक्रिय रहती हैं। एक काव्य संग्रह में आपकी रचना प्रकाशित हुई है।
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