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वक्त

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रचयिता : माधुरी शुक्ला

दसवीं कक्षा में पहुंचे पोते मनु के बदले रंग ढंग को दादा ब्रजकिशोर की बूढ़ी और अनुभवी आंखों ने मानो पढ़ और समझ लिया है। फिर कल उसे मोहल्ले के बिगड़ैल लड़कों के साथ घूमते  देख उनकी फिक्र बढ़ गई है। ब्रजकिशोर बेटे दिनेश से कह रहे हैं सिर्फ कमाने में ही मत लगा रहा कर घर की तरफ भी थोड़ा ध्यान दे। मनु की फिक्र भी किया कर वह बड़ा हो रहा है और गलत संगत में भी पड़ता दिखाई देने लगा है। उनका इतना कहना था कि बहू सरिता बरस पड़ती है बाबूजी की तो पता नहीं क्यों मनु से आजकल कुछ दुश्मनी हो गई है। वह कुछ भी करे इन्हें गलत ही लगता है। यह सुन ब्रजकिशोर खामोश हो जाते हैं। जानते हैं अब कुछ बोले तो बहस हो जाएगी। इस बीच दिनेश ऑफिस जाने के लिए तैयार होने लगता है खूंटी पर टंगा मनु की पैंट गलती से उससे नीचे गिर जाती है। जब पैंट  टांगने लगता है तो जेब से सिगरेट का पैकेट बाहर झांकता है। ऑफिस जाते वक्त रास्ते में सोचता है बाबूजी का कहना ठीक ही है – मनु की तरफ ध्यान देने का वक्त आ गया है।
लेखीका परिचय :- 
नाम – माधुरी शुक्ला
पति – योगेश शुक्ला
शिक्षा – एम .एस .सी.( गणित) बी .एड.
कार्य – शिक्षक
निवास – कोटा (राजस्थान)

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