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कब तक?

सुधीर श्रीवास्तव
बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.)

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आखिर कब तक हम
बेटियों के साथ हो रही
दरिंदगी को देखते रहेंगे।
कब तक सख्त कदम उठाने का
ढोल पीटते रहेंगे।
सख्त कारवाई और
कड़ी सजा की आड़ में
हम बेटियों की लाशों पर
बेशर्म बन रोते रहेंगे।
आखिर कब तक हम
बेटियों से होती दरिंदगी के बाद
हो रही उनकी मौतों पर,
उनकी वीभत्स लाशों पर
यूँ ही घड़ियाली आँसू बहाते रहेंगे।
कब तक हम बेटी बचाओ और
बेटी दिवस के नाम पर बेटियों को
झुनझुना पकड़ाते रहेंगे।
कब तक हम यूँ ही खुद को
समझाते रहेंगे।
एक और बेटी के साथ हो दरिंदगी की
सिर्फ़ बाट जोहते रहेंगे,
फिर वही अपना कोरा राग
कड़ी कारवाई ,सख्त सजा का
राग अलापते रहेंगे।
बेटी डर कर जिये या
दरिंदगी का शिकार हो मरती रहे
हम मुगालते का शिकार हो
कब तक खुद को बहलाते रहेंगे।
बटी की दर्द पीड़ा से
खुद को बचाते रहेंगे।
आखिर कब तक…..कब तक
और कब तक।

परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव
जन्मतिथि : ०१.०७.१९६९
पिता : स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव
माता : स्व.विमला देवी
धर्मपत्नी : अंजू श्रीवास्तव
पुत्री : संस्कृति, गरिमा
पैतृक निवास : ग्राम-बरसैनियां, मनकापुर, जिला-गोण्डा (उ.प्र.)
वर्तमान निवास : शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव जिला-गोण्डा, उ.प्र.
शिक्षा : स्नातक, आई.टी.आई.,पत्रकारिता प्रशिक्षण (पत्राचार)
साहित्यिक गतिविधियाँ : विभिन्न विधाओं की कविताएं, कहानियां, लघुकथाएं, आलेख, परिचर्चा, पुस्तक समीक्षा आदि का १०० से अधिक स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर की पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित। दो दर्जन से अधिक संकलनों में रचनाओं का प्रकाशन।
सम्मान : एक दर्जन से अधिक सम्मान पत्र।
विशेष : कुछ व्यक्तिगत कारणों से १७-१८ वषों से समस्त साहित्यिक गतिविधियों पर विराम रहा। कोरोना काल ने पुनः सृजनपथ पर आगे बढ़ने के लिए विवश किया या यूँ कहें कि मेरी सुसुप्तावस्था में पड़ी गतिविधियों को पल्लवित होने का मार्ग प्रशस्त किया है।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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