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रिश्तों की डोर

सुधीर श्रीवास्तव
बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश)
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सत्य घटना पर आधारित लघुकथा
जीवन में कुछ रिश्ते अनायास ही जुड़ जाते हैं। ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ। समान कार्य क्षेत्र के अनेक आभासी दुनियां के लोगों से संपर्क होता रहता है। जिनमें कुछ ऐसे भी होते हैं जो वास्तविक रिश्तों के अहसास से कम नहीं है। मेरे वर्तमान जीवन में इनकी संख्या भी काफी है, जो देश के विभिन्न प्राँतों से हैं।
एक दिन की बात है कि आभासी दुनिया की मेरी एक बहन का फोन आया, उसकी बातचीत में एक अजीब सी भावुकता और व्याकुलता थी। बहुत पूछने पर उसनें अपने मन की दुविधा बयान करते हुए कहा कि मैं समझती थी कि आप सिर्फ़ मेरे भैया है, मगर आप तो बहुत सारी बहनों/भाइयों के भी भैया हैं।
तो मैंने कहा इसमें समस्या क्या है?
उसने लगभग बीच में ही मेरी बात काटते हुए कुछ यूँ बोली, जैसे उसे डर सा महसूस हुआ कि कहीं मै नाराज न हो जाऊं-नहीं भैया समस्या तो कुछ नहीं है, मगर मैं तो सबसे छोटी हूँ, इसीलिए डरती हूँ।
मैंने उसे समझाया-डरो मत, तुम छोटी हो, तो सबसे ज्यादा लाड़ली भी हो, फिर तुम्हें खुश होना चाहिए कि तुम्हें इतनी सारी बहनों/भाइयों का मार्गदर्शन और सहयोग मिलेगा। फिर मेरा प्यार, दुलार कभी कम ज्यादा नहीं होगा। तुम्हारे अधिकार हमेशा सुरक्षित रहेंगें।
सच भी है वो मेरे लिए एकदम छोटी बच्ची सरीखी है। ये अलग बात है कि शादीशुदा है, एक बच्चे की माँ है। उसके ससुराल में भी लोग मेरे बारे में जानते हैं।
अब यह ईश्वर की लीला ही तो है कि हमनें एक दूसरे को देखा नहीं, कुछ महीनों पहले एक दूसरे का नाम तक नहीं जानते थे। लेकिन आज उसे उचित सलाह और मार्गदर्शन देकर खुशी होती है, ऐसा लगता है कि ये मेरी जिम्मेदारी है। जिसको मजबूत करती है उसके क्रियाकलाप। अपनी हर छोटी-बड़ी बात बताती, पूछती है, हर नये काम से पहले आशीर्वाद लेने के लिए फोन करती है। यही नहीं बहन की तरह जिद भी करती है तो भाई की चिंता परेशान भी रहती है। ऐसा लगता है कितना कुछ जानती है इस अनदेखे भाई के बारे में।
अब इसे समय का तकाजा कहें या उसकी किस्मत कि मेरे संपर्क में आने और मेरे मार्गदर्शन से उसकी स्वीकार्यता और प्रकाश तेजी से बढ़ने लगा। जिसका श्रेय वह ही नहीं उसका परिवार भी मुझे ही देता है। जबकि मैं जानता हूँ कि ये सब उसके श्रम का परिणाम है।
अब तो ईश्वर से यही प्रार्थना है कि इस रिश्ते की डोर यूँ मजबूत होती रहे और मुझे इतनी आत्मशक्ति दे कि मैं अपनी नन्ही सी लाड़ली बहन को ऊँचाइयों तक पहुंचा सकूँ।
वास्तविकता यह है कि मेरे पास समय कम है और अनेकों आभासी रिश्तों (कुछ उम्र में काफी बड़े अभिभावक सरीखे तो बहुत से छोटे- बड़े, भाई-बहन भी हैं) की उम्मीदों का केंद्र बिंदु भी मैं ही हूँ लोगों की अपेक्षाएं बहुत हैं। जिसे जाने अनजाने मैंनें ओढ़ रखा है और अब उन अपेक्षाओं को पूरा करना ही मेरा लक्ष्य है। जिसके लिए कोई अदृश्य शक्ति मुझे प्रेरित करती रहती है।

परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव
जन्मतिथि : ०१/०७/१९६९
शिक्षा : स्नातक, आई.टी.आई., पत्रकारिता प्रशिक्षण (पत्राचार)
पिता : स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव
माता : स्व.विमला देवी
धर्मपत्नी : अंजू श्रीवास्तव
पुत्री : संस्कृति, गरिमा
संप्रति : निजी कार्य
विशेष : अधीक्षक (दैनिक कार्यक्रम) साहित्य संगम संस्थान असम इकाई।
रा.उपाध्यक्ष : साहित्यिक आस्था मंच्, रा.मीडिया प्रभारी-हिंददेश परिवार
सलाहकार : हिंंददेश पत्रिका (पा.)
संयोजक : हिंददेश परिवार(एनजीओ) -हिंददेश लाइव -हिंददेश रक्तमंडली
संरक्षक : लफ्जों का कमाल (व्हाट्सएप पटल)
निवास : गोण्डा (उ.प्र.)
साहित्यिक गतिविधियाँ : १९८५ से विभिन्न विधाओं की रचनाएं कहानियां, लघुकथाएं, हाइकू, कविताएं, लेख, परिचर्चा, पुस्तक समीक्षा आदि १५० से अधिक स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर की पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित। दो दर्जन से अधिक कहानी, कविता, लघुकथा संकलनों में रचनाओं का प्रकाशन, कुछेक प्रकाश्य। अनेक पत्र पत्रिकाओं, काव्य संकलनों, ई-बुक काव्य संकलनों व पत्र पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल्स, ब्लॉगस, बेवसाइटस में रचनाओं का प्रकाशन जारी।अब तक ७५० से अधिक रचनाओं का प्रकाशन, सतत जारी। अनेक पटलों पर काव्य पाठ अनवरत जारी।
सम्मान : विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा ४५० से अधिक सम्मान पत्र। विभिन्न पटलों की काव्य गोष्ठियों में अध्यक्षता करने का अवसर भी मिला। साहित्य संगम संस्थान द्वारा ‘संगम शिरोमणि’सम्मान, जैन (संभाव्य) विश्वविद्यालय बेंगलुरु द्वारा बेवनार हेतु सम्मान पत्र।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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