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किनारों में बंधकर

डॉ. बी.के. दीक्षित
इंदौर (म.प्र.)

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किनारों में बंधकर ….. सहा बहुत होगा।
प्यार मेरे लिए ….. सच,रहा बहुत होगा।

ज़िंदगी के वो जंगल ….. कटीले भी होंगे।
मिले होंगे टापू ….. कई टीले भी होंगे।

तुम किनारों में बंधकर अकुलाई होगी।
जान, दो न बता अब, कैसी अँगड़ाई होगी?

उठतीं गिरती हिलोरों का, सीना दिखा दो।
मैं ठहरा समंदर हूँ, मुझे जीना सिखा दो।

थीं मुरादें हमारीं ….. एक दिन हम मिलेंगे।
दूरियाँ थी बहुत ….. फूल कैसे खिलेंगे?

मैं खारा मग़र ….. हैं मोती माणिक मुझी में।
प्यार लहरों में ढूंढूँ ….. या ख़ुद की ख़ुशी में?

ग़र तुझसे कहूँ, यूँ कि ….. तीब्र तूफ़ान हूँ मैं।
जबसे ज़लबे दिखाये तू ….. परेशान हूँ मैं।

मैं समंदर हूँ ….. लेकिन, प्यासा रहा हूँ।
मैं मोहब्बत का मारा ….. तमाशा रहा हूँ।

इतराकर इठलाकर ….. तू घर से चली थी।
जान, मालूम मुझे ….. तू बहुत मनचली थी।

यार, आजा समा जा, मेरा आग़ोश ले ले।
अब ठहरो ज़रा सा ….. थोड़ा होश ले ले।

मुझको पीने दे ….. तेरा जीभरकर के पानी।
मूक मद होश मय से ….. भरी है जवानी।

इतना सुनते ही …… नदी ने डुबकी लगाई।
कभी बहुत गहरे …… फिर लहरों पे आई।

फ़िर उठा ज्वार भाटा, और, बवंडर हुए थे।
वो इक दूजे में खोकर …… समंदर हुए थे।

ये कहानी समंदर की …… जब बिजू बताता।
नदी की ख़ुशी पर ….. बहुत प्यार आता।

 

परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्षा कानपुर में ग्रहण की व् आप गत ३६ वर्ष से इंदौर में निवास कर रहे हैं आप मंचीय कवि, लेखक, अधिमान्य पत्रकार और संभावना क्लब के अध्यक्ष हैं, महाप्रबंधक मार्केटिंग सोमैया ग्रुप एवं अवध समाज साहित्यक संगठन के उपाध्यक्ष भी हैं।


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