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युद्ध थोपने वालों की हम

अख्तर अली शाह “अनन्त”
नीमच

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मानवता के साथ यकीनन,
ऐसा करना है गद्दारी।
युद्ध थोपने वालों की हम,
करें न लोगों पैरोकारी।।
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युद्ध जहां पर महिलाओं को,
बेवा बना दिया जाता है।
युद्ध जहां पर गोदी सूनी,
करके खून पिया जाता है।।
अगर नहीं जीवन दे पाते,
जीवन लेने का क्या हक है।
हत्या करने या करवाने,
वाला सचमुच नालायक है।।
भले रहनुमा हो या राजा,
उसकी भी है हिस्सेदारी।
युद्ध थोपने वालों की हम,
करें न लोगों पैरोकारी।।
*****
क्या जनता पर निर्मम होना,
काम नहीं बोलो शैतानी।
महल बनें खुद के नित नूतन,
खोली उनके लिए पुरानी।।
तनपर भले न उनके कपड़े,
हाथों में हथियार थमा दें।
हिम्मत करें प्रश्न करने की,
हंटर भी दो चार जमा दें।।
भक्ति काआश्रय लेकर हम,
बोझ न उनपर लादें भारी।
युद्ध थोपने वालों की हम,
करें न लोगों पैरोकारी।।
******
युद्ध युद्ध होता है भाई,
सतपथ पर चलना आराधन।
खून खराबा “अनंत” ना हो,
ऐसा हो अपना बस चिंतन।।
हार जीत की बात नहीं है,
नर संहार पे दृष्टि डालें।
कितनी सुन्दर ये दुनिया है,
इस पर कीचड़ नही उछालें।।
अंश सभी में ईश्वर का है,
ईश्वर की है दुनिया सारी।
युद्ध थोपने वालों की हम,
करें न लोगों पैरोकारी।।

परिचय :- अख्तर अली शाह “अनन्त”
पिता : कासमशाह
जन्म : ११/०७/१९४७ (ग्यारह जुलाई सन् उन्नीस सौ सैंतालीस)
सम्प्रति : अधिवक्ता
पता : नीमच जिला- नीमच (मध्य प्रदेश)


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