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काँटों ने महक

प्रमोद त्यागी (शाफिर मुज़फ़्फ़री)
(मुजफ्फरनगर)

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काँटों ने महक दर्द ने आराम दिया है
बोसा जो उसनें आज खुलेआम दिया है

आगोश में शर्मा के वो आयें हैं इस कदर
जैसे की किसी फर्ज़ को अंजाम दिया है

अहसान दर्द का है जो हासिल हूए हमें
मर जाते ख़ुशी से इन्होंने थाम लिया है

साजिश है कोई या मेरे अब दिन बदल गये
दुश्मन ने आज भर के मुझे जाम दिया है

पैमाना जो ख़ाली मेरे लब से लगा रहा
दुनिया ने इसे मयकशी का नाम दिया है

उसनें जो निभाई है मुहब्बत में तिजारत
हमनें भी उसको दाम सुबह शाम दिया है

तुफान बहुत तेज है “शाफिर” जरा संभल
हल्दी सी इक आहट ने ये पैगाम दिया है

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परिचय :- प्रमोद त्यागी (शाफिर मुज़फ़्फ़री)
ग्राम- सौंहजनी तगान
जिला- मुजफ्फरनगर
प्रदेश- उत्तरप्रदेश


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