रचयिता : नवीन माथुर पंचोली
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बुझ गई इस तरह
बुझ गई इस तरह अब लगी।
जिस तरह घूँट भर तिश्नगी।
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वक़्त ने जब इशारा किया,
तब चली दो क़दम जिंदगी।
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किस तरह दूर रक्खें नज़र,
भा गई यार की सादगी।
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जब तलक़ वो रहे सामने,
उनसे होती रही दिल्लगी।
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रात थी, नींद थी,ख़्वाब थे,
आँख लेकिन जगी की जगी।
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है उन्हीं की दुआ का असर,
जिनकी करते रहे बन्दगी।
लेखक परिचय :-
नाम : नवीन माथुर पंचोली
निवास : अमझेरा धार मप्र
सम्प्रति : शिक्षक
प्रकाशन : देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन।
तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित।
सम्मान : साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह।
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