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अनुराधा बक्शी “अनु”
दुर्ग, छत्तीसगढ़
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यदि औरत कुछ ठान ले तो उसके लिए कुछ भी असंभव नहीं। यूं ही उसे शक्ति नहीं कहा जाता। कावेरी उक्त लाइन की जीवंत मिसाल लग रही थी। अब आप सोचेंगे-कावेरी….! कौन कावेरी….. ?
जी हां वही कावेरी है जिसने अपने दोनों भाइयों द्वारा माता-पिता को अनाथ छोड़ दिए जाने के बाद अपनी सारी उम्र उनकी देखभाल में निकाल दी। माता-पिता की दवाई और घर की व्यस्था चलाने के लिए प्राइवेट ऑफिस में कार्य करते हुए किसी पारखी की नजर उस पर पड़ी और उसने उसे कानून की पढ़ाई करने की सलाह दी। चालीस की उम्र छूते सभी जिम्मेदारियों को संभालते अच्छी एडवोकेट बन गई। पर आपको पता है-वकालत एक ऐसा पैशा है जहां कई सालों तक आपको जूनियर की नजर से ही देखा जाता है। शुरुआत के कुछ वर्ष वक्त का इन्वेस्टमेंट होता है, सरकारी ब्याज जितना कम पैसा, और अनुभव की एफडी। कावेरी भी इसी शुरुआती दौर से गुजरते बहुत मेहनत के बाद थोड़ा बहुत कमाने लगी थी। किसी महीने माता-पिता की दवाइयों के खर्च और राशन की व्यवस्था के बाद बचे हुए पैसे से घर का एक कमरा कभी दूसरा कमरा दुरुस्त करती रहती। बढ़ते वक्त के साथ भाइयों को लगा कावेरी अच्छा कमा रही है। किस की अंदरूनी हालत क्या है किसको पता? माता-पिता की उम्र ज्यादा नहीं बची है कहीं प्रॉपर्टी कावेरी के नाम ना कर दें यही सोचकर भाइयों ने घर में धीरे-धीरे अपना सिक्का जमाना प्रारंभ कर दिया। वही हुआ जो वह चाहते थे। मतभेद-मनभेद में बदला और कावेरी घर के सभी सदस्यों के रहते हैं अकेली हो गई। अधेड़ उम्र कावेरी माता पिता से प्यार के लिए तरसती। भतीजे-भतीजी, भाई-भाभी के व्यवहार से उपेक्षित मन में खालीपन को महसूस करती। पर भगवान ने उसके लिए कुछ अलग ही सोच कर रखा था। उसके आने से कावेरी के तरसते मन का वो कोना प्यार की मिठास से भर गया था जहां कभी बारिश हुई ही नहीं थी। अब आप पुंछेगे “वो” कौन …..?
अरे ! वही मिस्टर जॉनसन। जिससे कुछ मुलाकातों के बाद कावेरी को प्यार हुआ और फिर शादी। पर वह बेरोजगार था। अपनी हिम्मत के बलबूते वो ये शादी के लिए राज़ी तो हो गई पर विजातीय वर होने की वजह से कावेरी को घर के साथ जयजाद से भी निष्कासित होना पड़ा। जिम्मेदारी में बराबरी की हिस्सेदारी और जायदाद में निष्कासन। कभी-कभी यह माता-पिता भी ना जातियां कर देते हैं। स्वयं की कमाई प्रॉपर्टी वो जिसे चाहे देने में स्वतंत्र थे। अधिवक्ता होते हुए कावेरी कुछ ना कर सकी। अपनों से मिले धोखे से टूटी हुई कावेरी किराए के मकान में चली गई जो थोड़ी बहुत बचत थी वह नहीं गृहस्थी की अति आवश्यक वस्तुओं में और मकान किराए में खर्च हो गया था। भविष्य की गर्त में क्या है किसको पता? घर से अलग हुए महीने भी ना बीता की कोरोना की वजह से लॉकडाउन हो गया। लॉकडॉउन का एक महीना बीत चुका था।दाल रोटी के जुगाड़ में कावेरी लगातार यहां वहां हाथ-पैर मार रही थी। कोर्ट बंद हो चुके थे। केसेस की डेट स्वतःआगे बढ़ रही थी। घर खर्च निकलना बहुत मुश्किल हो रहा था। लॉक डॉउन में मिले छोटे केस से किराया निकालना मुश्किल था राशन की बात बहुत दूर थी। लॉकडॉउन का शानदार तीसरा महीना चल रहा था। पेट की भूख ने उसे दोस्तों से मदद मांगने मजबूर कर दिया। इतने दिन संयुक्त परिवार में रहने के कारण किसी भी तरह की सरकारी सहायता का कार्ड उसने अपने नहीं बनवाया। घर में राशन खत्म हो चुका था। कहीं से पता चला कोर्ट से आर्थिक सहायता दी जा रही है जमीर को मार कर तुरंत वहां जा खड़ी हुई। बहुतों के सामने उसकी बंद मुट्ठी खुल चुकी थी। उसके मन में एक बार भी नहीं आया कि ना शादी करती ना ऐसा होता। ये प्यार भी ना क्या क्या करवा लेता है। अपने दम पर सब संभाल लूंगी की सोच रखते हुए अभी जिंदगी महत्पूर्ण है। साध्य महत्व है ना कि साधन। परिस्थिति हमेशा एक जैसी नहीं रहती। वक्त बदलेगा, मेरा भी और संसार का भी। ऐसा सोचते हुए वह धीरज रखी हुई थी। साथी एडवोकेट थैले में राशन देते हुए औपचारिकता निभाते हुए बोला कुछ और भी जरूरत हो तो बताना। थैले में क्या है? क्या है? की उत्सुकता ने जिसे पता ना था उसे भी कावेरी की आर्थिक हालत के बारे में बता दिया। कावेरी थैला उठाकर स्कूटर की तरफ जा रही थी तभी पीछे से साथी वकील ने आवाज दी। उस तरफ मुड़कर देखते ही कावेरी समझ गई कि कोई नेता एडवोकेट राशन के पैकेट बांट रहा है फोटो के साथ। वह धीमे कदमों से कुछ टूटी, कुछ संभली, स्वाभिमान की धज्जियां उड़ाते पैकेट्स को लेकर चली दी। चर्चा का विषय बन चुकी कावेरी किस परिस्थिति से गुजर रही है सबको पता चल चुका था। कोई कहता पहले क्यों नहीं बताया? कोई कुछ कहता। कोई कहता और जरूरत हो तो बताना। सभी के शब्दों में ऐसी बेचारगी झलक जो किसी के भी स्वाभिमान को तोड़ दे। जितने मुंह उतनी बातें। इन सब बातों से वाकिफ उसे सिर्फ पति की खाने की थाली ही दिख रही थी। जी….हां….. ! ये है कावेरी….।
“डाल को जमीन पर यूं झुकते देखा है।
इश्क में बादशाह फकीर बनते देखा है।”
कावेरी की कर्मठता को देख उसके प्रति मन श्रद्धा से झुक गया। मन कह रहा था ये प्यार भी ना … क्या क्या करवा लेता है….।
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परिचय :- अनुराधा बक्शी “अनु”
निवासी : दुर्ग, छत्तीसगढ़
सम्प्रति : अभिभाषक
मैं यह शपथ लेकर कहती हूं कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है।
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