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शतरंज के मोहरे की तरह हो गयी ये जिंदगी…

दिनेश शर्मा ‘डीन सा’
भीलवाड़ा (राजस्थान)

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बिछी हुई बिसात की तरह
करते हुए नुमाइंदगी
शतरंज के मोहरे की तरह हो गयी
ये जिंदगी।

मन का यह सुंदर सफेद घोड़ा
चलता रहता है सदा ढाई चाल
मचल-मचल कर खुद होता बेहाल।

सिपाही बना संकल्प
मन के घोड़े पर हुआ सवार
करता है कोशिश
चले सदा सीधा पर
अपने ही टेढ़े पन से
होता सब बेकार।

इच्छा रूपी ऊंट
को जिंदगी के इस अंतहीन रेगिस्तान में
मिलता नही कोई जब सहारा
केवल भागना ही विकल्प है
यह सोचकर मन मसोस कर
रह जाता बेचारा।

गज बना देह का आलस्य
हिलता डुलता कभी मचलता
किये हो जैसे सूरा पान
कभी है चलता
अधिक है रुकता
चल रहा मतवाली चाल।

और जिसको थी इन्हें
डालनी जंजीर
ऐसा इक वो बुद्धि रूपी वजीर
रख नही सका इन पर कोई अंकुश
लगा विचरने खुद धरा के
चारो कोनो में निरंकुश।

शत्रु की तरह लगे ये सभी
दिन-रात
देने अपने जीवन दाता
देह रूपी बादशाह को शह-मात।

ऊंचे-नीचे, खरे-खोटे सब ही कामो में सदा रत
बादशाह इस देह की
करते रहे सब बन्दगी।
शतरंज के मोहरे की तरह
हो गयी ये जिंदगी।।

परिचय :- दिनेश शर्मा ‘डीन सा’
शैक्षिक योग्यता : स्नातकोत्तर (हिंदी, राजस्थानी), राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (UGC -NET) (हिंदी राजस्थानी), राज्य पात्रता परीक्षा (RAJSTHAN-SET) – हिंदी
सम्प्रति : प्राध्यापक (राजकीय सेवा) -हिंदी
निवासी : शास्त्रीनगर, भीलवाड़ा (राजस्थान)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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