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ये जीवन

अन्नू अस्थाना
भोपाल (मध्य प्रदेश)
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ये जीवन सीधा सा गुज़र जाए,
ये बहुत मुश्किल होता है।
दिक्कतें आती रहती हैं,
पर सामना सीधे से हो जाए,
ये जरा मुश्किल होता है।

फूल कांटों में भी उगते हैं,
कांटा चुभ न जाए
यह जरा मुश्किल होता है।
यह जीवन सीधा सा गुजर जाए,
यह बहुत मुश्किल होता है।

मौत हमेशा साथ रही है रहेगी,
वो जरा टल जाए,
उससे यह कहना
बहुत मुश्किल होता है।
उसने तो बहाने ढूंढ रखे हैं,
हमें साथ ले जाने के,
रुक जा जरा अभी चलता हूं,
यह मैं कह दूं
ऐसे में वह रुक जाए,
यह बहुत मुश्किल होता है।

मंजिल तक पहुंचना है मुझे,
पर मंजिल बहुत दूर है।
रास्ते पर चल निकला हूं,
पहुंचूंगा कहां मालूम नहीं,
राह दिख रही है करीब,
पर मंजिल बहुत दूर है।
करीब आ जाए मंजिल,
ये कहना बहुत मुश्किल होता है।

यह जीवन सीधा सा
गुजर जाए यह
बहुत मुश्किल होता है।
कुम्हार की तरह मैंने
चाक पर गीली माटी रखी है,
दीया बनाने के लिए।
अपने करो से
माटी को संभालना,
ये जरा मुश्किल होता है।

अभी रमना पड़ेगा
और रौंदना पड़ेगा
माटी की तरह,
तभी एक दीया बनेगा
रोशनी के लिए।
पतंग में जौंते बांध तो लूंगा,
डोर से पतंग को उड़ा भी लूंगा,
पर हवा के थपेड़े
पतंग को ही सहने होंगे।
क्योंकि डोर कब टूट जाएगी
ये कहना मुश्किल होता है।

इसलिए हवा से दोस्ती
पतंग को करनी होगी,
नई ऊंचाई नई मंजिल
तय करनी होगी।
ये जीवन सीधा सा गुजर जाए,
ये बहुत मुश्किल होता है।

लेखक परिचय :-  अन्नू अस्थाना
निवासी :- भोपाल, मध्य प्रदेश
कविता लिखने कि प्रेरणा :- कवि संगोष्ठीयों में भाग लेते थे एवं कवियों से प्रेरणा स्वरूप हिन्दी भाषा से स्नेह होता चला गया तथा हिन्दी में कविता लिखने का ज्ञान होता चला गया।
वर्तमान कार्य:- हिन्दी टाइपिंग कार्य एवं छायप्रति (फोटो -काॅपी) कार्य
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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