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यही है मेरी राय…

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दामोदर विरमाल
महू – इंदौर (मध्यप्रदेश)

दुनिया के अनुरूप रहिये,
यही है मेरी राय।
ज़रूरी नही की पसंद आपकी,
दुनिया को पसंद आये।

जब कोई ना मांगे आपसे, तो राय कभी मत दे देना।
बिना वजह तुम लोगो से कोई दुश्मनी मत ले लेना।
इधर उधर तब देखना जब कोई तुम्हे बताये-
दुनिया के अनुरूप रहिये,
यही है मेरी राय।
ज़रूरी नही की पसंद आपकी,
दुनिया को पसंद आये।

वैसे तो इस दुनिया मे कोई किसी को नही पूछता।
सबको बुराइयों के अलावा कोई काम नही सूझता।
सही कहने वाले को ही, सारे गलत बताये-
दुनिया के अनुरूप रहिये,
यही है मेरी राय।
ज़रूरी नही की पसंद आपकी,
दुनिया को पसंद आये।

में तो बस जानू इतना कि रखो खुदी का ध्यान।
जब तक कोई ना मांगे मत देना तुम कोई ज्ञान।
बेवजह गाली खाने की नौबत ना आ जाये-
दुनिया के अनुरूप रहिये,
यही है मेरी राय।
ज़रूरी नही की पसंद आपकी,
दुनिया को पसंद आये।

पड़ोसी का हो झगड़ा और दोस्तो का हो लफड़ा।
प्यार से ही निपटना अगर सामने वाला हो तगड़ा।
उनको बचाने में कहीं आप अंदर ना हो जायें-
दुनिया के अनुरूप रहिये,
यही है मेरी राय।
ज़रूरी नही की पसंद आपकी,
दुनिया को पसंद आये।

लेखक परिचय :- ३१ वर्षीय दामोदर विरमाल पचोर जिला राजगढ़ के निवासी होकर इंदौर में निवास करते है। मध्यप्रदेश में ख्याति प्राप्त हिंदी साहित्य के कवि स्वर्गीय डॉ. श्री बद्रीप्रसाद जी विरमाल इनके नानाजी थे। आपके द्वारा अभी तक कई कविताये, मुक्तक, एवं ग़ज़ल व गीत लिखे गए है, जो आये दिन अखबारों में प्रकाशित होते रहते है। गायन के क्षेत्र कराओके गीत गाने में आप खासी रुचि रखते है।


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