रमेश चौधरी
पाली (राजस्थान)
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यह जिन्दगी है जनाब,
ऐसे ही नहीं महकेगी,
इन फूलों की खुशबू से
फूलों की खुशबू से,
महक सकता है वातावरण
पर जिंदगी तो महकेगी
इन काटो की सूलो से,
यह जिन्दगी है जनाब
तन मन को प्रसन्न कर देगे,
यह फूलो की सुंदरता
पर जिंदगी को प्रसन्न नहीं
कर पाएंगे यह फूलो की कोमलता
यह जिंदगी है जनाब
इसे फूलों की शया से
नहीं सवारी जा सकती है,
इन्हें तो काटो की
शया से सजाना होगा,
यह जिन्दगी है जनाब,
कभी तो खुशियां समाई
नहीं जाती,
कभी तो खुशियां मनाई
नहीं जाती,
यह जिन्दगी है जनाब,
झाड़े की रजाई छोड़ के,
सूर्य की गर्मी तोड़ के,
खड़े हो जावो अपने सपनों पर,
जब तक ना झुको
तब तक सपने अपने न हो जाएं।
यह जिन्दगी है जनाब,
कभी अपनों की तनहाई सताएगी
कभी इश्क के लम्हें तड़पपाएंगे,
यह जिन्दगी है जनाब,
यह रीट के ख़्वाब बोहत बड़े है,
इसे पाने के लिए बोहत खड़े है,
छोड़ दो अपनी मस्तानी नींदों को,
तब तक ना रुको,
जब तक पच्चीस अप्रैल ना आ जाएं।
यह जिन्दगी है जनाब,
अक्सर देखा है मैने कमल को,
कीचड़ में खिलते हुए,
पर वक्त आने पर जनाब,
कीचड़ के कमल महका देते हैं,
मन्दिर के गर्भग्रह को।
यह जिन्दगी है जनाब,
कभी तो मन खुश हो जाता है,
यारों की दोस्ती से
कभी तो मन उदास हो जाता है,
काफिरों की दोस्ती से।
यह जिन्दगी है जनाब,
उतार चढ़ाव तो आते रहेंगे,
इन तन्हाइयों में।
आप मस्त रहो
अपनी मदहोशीयो में।
यह जिन्दगी है जनाब,
यह जिन्दगी है जनाब……।।
परिचय :- रमेश चौधरी
निवासी : पाली (राजस्थान)
शिक्षा : बी.एड, एम.ए (इतिहास)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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