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है यह जीवन छलावा

भारत भूषण पाठक देवांश
धौनी (झारखंड)

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धनुषाकार वर्ण पिरामिड में प्रयत्न :-
विधान-यह आज हिन्दी साहित्य क्षेत्र में प्रमुखता से प्रयोग में आने वाली जापानी विधा है। यह १४ चरण वाली २८ वर्णों वाली विधा है।इसके प्रथम चरण मे १ वर्ण, द्वितीय चरण में २, तृतीय चरण में ३, चतुर्थ चरण में ४, पञ्चम चरण में ५, षष्ठ चरण में ६ तथा सप्त चरण में ७ वर्ण होते हैं, आठवें चरण में ७ वर्ण, नौवें चरण में ६ वर्ण, दसवें चरण में ५ वर्ण, ग्यारवहें चरण में ४, बारहवें चरण में ३, तेरहवें चरण में २ वर्ण तथा चौदहवें चरण में १ वर्ण होते हैं, यानि वर्ण पिरामिड की पूर्णतः उल्टी गिनती। आधे वर्णों की गिनती नहीं होती तथा किन्हीं दो चरणों में तुकांत होने से सृजन लाजवाब हो जाती है।
सारांश में बोलना कम काम ज्यादा के सिधान्त का पालन करता है यह।

है
यह
जीवन
छलावा ही
वास्तविकता
नहीं भुलावा ये
आया जो है जाएगा
जानेवाला फिर
कभी लौटेगा
सोचता ये
चंचल
मन
है

ये
सत्य
शाश्वत
आत्मा कभी
मरती नहीं
मगर देह तो

यह नष्ट जाता है
कपड़े पुराने
बदले जाते
ले शरीर
बदल
आत्मा
ये
लें
लड़
बेकार
हम लेते
एक-दूजे से
कभी भी व्यर्थ के
आडम्बर में यहाँ
कुछ विचारे ही
केवल बिना
क्या सही है
गलत
और
क्या????

.

परिचय :- भारत भूषण पाठक ‘देवांश’
लेखनी नाम – तुच्छ कवि ‘भारत ‘
निवासी – ग्राम पो०-धौनी (शुम्भेश्वर नाथ) जिला दुमका (झारखंड)
कार्यक्षेत्र – आई.एस.डी., सरैयाहाट में कार्यरत शिक्षक
योग्यता – बीकाॅम (प्रतिष्ठा) साथ ही डी.एल.एड.सम्पूर्ण होने वाला है।
काव्यक्षेत्र में तुच्छ प्रयास – साहित्यपीडिया पर मेरी एक रचना माँ तू ममता की विशाल व्योम को स्थान मिल चुकी है काव्य प्रतियोगिता में।

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