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ये मजबूरी हमारी है

शरद जोशी “शलभ”
धार (म.प्र.)

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ये मजबूरी हमारी है, छुपाकर रख नहीं सकते
चिरागों को हवाओ से, बचाकर रख नहीं सकते

हज़ारों दर्द देता है, उसी से प्यार भी तो है
निगाहों से उसे पलभर हटाकर रख नहीं सकते

हमे ख़्वाहिश फ़लक की है, वहाँ भी देखना होगा
हमेशा सामने ये सर, झुकाकर रख नहीं सकते

अभी तक जो भी चाहा है, उसे पाकर रहे हैं हम
ये बाहों को हमेशा यूं उठाकर रख नहीं सकते

हक़ीक़त में अगर तू आ सके तो आ घड़ी भर को
तेरी तस्वीर ही दिल से लगाकर रख नहीं सकते

ये पानी और ये है आग संगम हो तो कैसा हो
ग़म-ए-दिल को खुशी के संग मिलाकर रख नहीं सकते

“शलभ” मालूम है दुनिया तबाह हो जाएगी अपनी
ये सोए दर्द को पलभर जगा कर रख नहीं सकते

परिचय :- धार (म.प्र.) निवासी शरद जोशी “शलभ” कवि एवंं गीतकार हैं।
विधा- कविता, गीत, ग़ज़ल।
प्राप्त सम्मान-पुरस्कार- राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान एवं विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा वाणी भूषण, साहित्य सौरभ, साहित्य शिरोमणि, साहित्य गौरव सम्मान से सम्मानित हैं।
म.प्र. लेखक संघ धार, इन्दौर साहित्य सागर इन्दौर, भोज शोध संस्थान धार आजीवन सदस्य हैं। आप सेवानिवृत्त शिक्षक हैं, अखिल भारतीय साहित्य परिषद धार (म.प्र.) के जिला अध्यक्ष हैं व वर्तमान में साहित्य सेवा में निरंतर संलग्न हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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