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जिंदगी का ये कारवां

डॉ. तेजसिंह किराड़ ‘तेज’
नागपुर (महाराष्ट्र)
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यूं ही गुजरे जा रहा हैं
जिंदगी का ये कारवां,
बेगुनाह इंसान और
दम तोड़ रही हैं जिंदगियां।

थमने का नाम नहीं, और
बढ़ता ही जा रहा ये सिलसिला।
कहां कमी हुई हुक्मरानों से
और अपनों से बड़ी गलतियां।

गर संभल गये तो रुक सकता हैं
अब भी मौत का ये कारवां।
गलतियों को गर सुधार ले तो,
बिखेर सकते हैं खुशियों का दारवां।

अपनों के बीच आज अपने
ही बेगानें हो चुकें हैं,
पास होकर भी लाशों से
कितने दूर हो चुकें हैं।

चाह कर भी कोई रीति रिवाज
ना निभा पा रहे हैं हम।
अपनों के ही सामने अपनी
जान को बचा रहें हैं हम।

सिसकती मौत और
जिंदगी की ये कैसी जंग हैं,
ना कोई दृश्य शत्रु हैं
ना कोई शरीर भंग हैं।

एक वायरस के आगे
महाशक्तियां भी दंग हैं,
जिंदगी जिना भी चाहे तो
अब जिंदगी कितनी बदरंग हैं।

हाथ उठते हैं मदद के तो
क्यों थम जाता हैं,
इंसान भी आज इंसान की
मदद को कतराता हैं।

पहचानों अपनी अस्मिता को
और मानव के धर्म को,
आचरण और संस्कारों से
दूर हो रहे अपने कर्म को।

समय की फिजा से इस
अमानवीय जहर को दूर कीजिए,
इंसान है हम सब इंसानियत को
कुछ तो महत्व दीजिए।

वक्त गुजरते ही फिर से
जहां कि आहो हवा बदलेगी,
नई पीढ़ी को गर संभाल सके तो
कुछ नसीहत उन्हें मिलेगी।

परिचय :- डॉ. तेजसिंह किराड़ ‘तेज’
मूल निवासी : अमझेरा, जिला धार (म.प्र.)
जन्म दिनांक : १२/११/१९६६
शिक्षा : एम.ए.,एमफिल, पीएच.डी
* वरिष्ठ पत्रकार व राजनीति विश्लेषक
* शिक्षाविद्‌
* भूगोलवेत्ता
* पीएचडी शोध सुपरवाईजर
* कवि, कहानीकार व लेखक
सम्प्रति : (सहायक कुलसचिव ) नागपुर (महाराष्ट्र)
सम्मान : ग्राम गौरव अवार्ड, समाज रत्न सम्मान, समाज भूषण अवार्ड, उत्कृष्ट शिक्षक सम्मान, प्रखर प्रवक्ता सम्मान, साहित्य रत्न और साहित्य भूषण सम्मान, यंग ज्याग्राफर्स अवार्ड, क्रांतीकारी लेखक सम्मान, उत्कृष्ट मंच संचालक सम्मान, शब्द अलंकरण सम्मान, सरस्वती मानस सम्मान, उत्कृष्ट समाज सेवक सम्मान आदी सम्मान से सम्मानीत।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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