किरण बाला
ढकौली ज़ीरकपुर (पंजाब)
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ये दो जल बिंदु, न जाने
कब और क्यों छलक पड़ते हैं !
अस्थिर से मुझको क्यों
कभी-कभी ये लगते हैं।
ये सिर्फ अश्रु धारा ही हैं
या फिर हैं कुछ और
क्या हैं ये पीड़ा के उद्भव !
या फिर हैं चिर-शान्त मौन।
ये तो हैं दर्द का कोमल अहसास
ले आता है बीते दिन भी पास
युगों-युगों से चिर-स्थाई सा
दे जाता है सुख की आस।
नहीं सिर्फ पीड़ा के साथी
उन्माद में भी छलक पड़ते हैं
कभी-कभी बन जीवन के प्रेरक
नियत मंजिल तक ले चलते हैं।
कमजोर नहीं तुम इनको समझो
प्रलयकारी भी हो सकते हैं
कहीं बनते हैं घावों के मलहम
कहीं चिंगारी भी बन सकते हैं।
यदि न होते ये अश्रु तो
जीवन भाव-शून्य हो जाता
रंग न होता कोई जीवन में
बेजान सा ये जग होता।
फिर भी सोचती हूं, न जाने
कौन से उद्गम से निकल पड़ते हैं
ये दो जल बिंदु, न जाने
कब और क्यों छलक पड़ते हैं ….
(पूर्व में प्रकाशित रचना)
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परिचय :- किरण बाला
पिता – श्री हेम राज
पति – ठाकुर अशोक कुमार सिंह
निवासी – ढकौली ज़ीरकपुर (पंजाब)
शिक्षा – बी. एफ. ए., एम. ए. (पेंटिंग) यू जी सी (नेट)
व्यवसाय – टी. जी. टी. फाईन आर्ट्स (राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, मौली जागरण चण्डीगढ़)
प्रकाशित पुस्तकें – ३ साँझा काव्य संग्रह प्रकाशित और ३ प्रकाशाधीन
सम्मान – दिल्ली साहित्य रत्न सम्मान, सरदार भगत सिंह काव्य लेखन , रैदास साहित्य पुरस्कार
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