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काम पर लगो चलो

विवेक सावरीकर मृदुल
(कानपुर)

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उम्र की ढलान को, मन की थकान को
भूल कर उठो चलो, काम पर लगो चलो।।

मंजिलों को पाना है, तो चलने का जतन करो
लोग जुड़ें खुद बा खुद, ऐसा आचरण करो
काफिला जुटाओ मत, पथ का तुम चलन बनो
भूल कर…………

कायरों की तरह, यूँ पलायन मत करो
कर्म करो डूब कर, थोड़ी हिम्मत धरो
बात ऐसी बोलो के, सबके उद्धरण बनो
भूल कर…………

रात है न इसलिए, कष्ट लग रहे बड़े
पर सुबह के सामने, होंगे कैसे ये खड़े ?
तुम उजाले के लिए, सूर्य की किरण बनो
भूल कर…………

 

लेखक परिचय :-  विवेक सावरीकर मृदुल
जन्म :१९६५ (कानपुर)
शिक्षा : एम.कॉम, एम.सी.जे.रूसी भाषा में एडवांस डिप्लोमा
हिंदी काव्यसंग्रह : सृजनपथ २०१४ में प्रकाशित, मराठी काव्य संग्रह लयवलये,
उपलब्धियां : वरिष्ठ मराठी कवि के रूप में दुबई में आयोजित मराठी साहित्य सम्मेलन में मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व, वरिष्ठ कला समीक्षक, रंगकर्मी, टीवी प्रस्तोता, अभिनेता के रूप में सतत कार्य, हिंदी और मराठी दोनों भाषाओं में समान रूप से लेखन।
संप्रति : माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल में सहायक कुलसचिव।

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