अमिता मराठे
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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सीमा घर में प्रवेश करने के बाद सीधे बेडरूम में चली गई थी।
“मैं बहुत थक गई हूं।” सुनो जी कोई बुलाये या माँ पुकारे तो भी उठाना नहीं। आदेश देने के लहजे से कहकर, सीमा पलंग पर हाथ पैर फैलाये पसर गई थी।
सेहल सीमा के नाटक को गौर से देख रहा था। माँ सुबह से काम में व्यस्त रहती फिर भी कुछ नहीं बोलती, थकान, चिन्ता को जैसे निगलना जान गई हो। आखिर “माँ'” है ना!
सीमा करवटें बदलती सोने का उपक्रम करके पड़ी थी। थोड़ी देर बाद सेहल सीमा के पास आया, हां वाकई में थक गई हैं। नींद के आगोश में गये चेहरे को देखकर सेहल के मन में ढेर-सा लाड़ उमड़ आया। लेकिन इस वक्त हिम्मत जुटाना मुश्किल था।
भरी दोपहर के दो बज रहे थे। माँ अभी भी रसोईघर में काम निपट रही थी।
सीमा का यूं सोना भी उसे अखर रहा था।
बैठक से भी रसोई का कमरा दिखाई देता था। सेहल ने माँ की ओर देखा वह जरा भी दिलशिकस्त नहीं हुई थी। चेहरा मानो मुस्करा रहा हो। विवाह के पहले भी माँ ने ऐसे ही मुस्कराते हुए समझाया था।” बेटू घर में तू इकलौता है। हमारी चाहत है अपनी जात बिरादरी की लड़की देख लेगा तो हम कुछ समझा पायेंगे।”
लेकिन मैं तो इस सीम्मी के प्रेम पाश में अटक गया था। ये हिन्दू ब्राह्मण और हम मराठी, फिर भी परिवार वालों को यूं कहते मना लिया था, कि इनके संस्कार स्वभाव में कोई बड़ा अन्तर नहीं है। सीमा बहुत सुंदर, चतुर, और एक्टिव लड़की है। वह मेरी बचपन से मित्र भी हैं। आप भी उसे भलीभांति जानती है।
जब मेरा दृढ़ निश्चय देखा तो माँ तो चुप हो गई थी। लेकिन पापा ने कई दिनों तक हंगामा मचाये रखा था। आखिर माँ ने समझाते हुए कहा था। “देख सेहल अंतर्जातीय विवाह के लिए मनाही नहीं उसकी कृतियों को, विचारों को सहमति देने का काम तुम्हारा होगा। आपस में अनबन हो गई तो तुम्हें ही सुलझाना होगा।
सीमा का कोई दोष, हम नहीं निकालेंगे। वह तो गृह लक्ष्मी समान तुल्य रहेगी। हर इंसान में विशेषताएं तो होती ही है। तेरी बीवी बाह्य कामों को अच्छी तरह जानती है। घर के कामकाज पांच प्रतिशत ही जानकारी में है, कोई बात नहीं धीरे-धीरे सीख लेगी।
सेहल की विचार तंद्रा एकदम भंग हो गई। सामने माँ आकर खड़ी थी। उनके हाथों में जल से भरा ग्लास था। वह मुझे साक्षात लक्ष्मी, सरस्वती और दुर्गा स्वरूप नज़र आ रही थी। माँ की सौम्य, शान्त, धीर गंभीर, मुद्रा से शक्ति की किरणें घर भर में फैले रही थी।
लेकिन सीमा असुर के भाँति खराटे लगायें सो रही थी।
अरे ! क्या सोच में पड़ गया है सेहल, उठ चल तू ही खाना खा ले। कहते, माँ ने बाहर आये हुए सब्जी वाले को आवाज लगा दी। एक से एक जुड़े काम करते माँ को हम पूछ भी नहीं सकते थे कि “माँ मैं मदद करूं आपकी” क्योंकि हर काम में “काला अक्षर भैंस बराबर” सीमा का स्वभाव तो ऐसा था कि देखा और तुनक कर सटक जाना। मैं मन में सोचता बड़ी कामचोर है।सेहल जैसे ही खाना खाकर कमरें में आया तो देखा सीमा ने डार्क लाल रंग की साड़ी पहनी और ढाई इंच ऊंची ऐड़ी की चप्पल पहनकर दरवाजे की ओर जाते हुए बोली, सेहल माँ को बता देना मैं सहेली के साथ खाना खाऊंगी तो अभी उसके घर जा रही हूं। एक आध घंटे में लौट आऊंगी।
सेहल का माह के दूसरे शनिवार की छुट्टी थी। इसलिए वह घर पर ही था। सीमा को तो अब मेरी भी चिंता नहीं होती। गंभीरता से सोच में पड़ा वह चित्त को न्यूज पेपर की खबरें पढ़ने में लगाने की चेष्टा करने लगा।
सजा हुआ बैठक कमरा भी चुभ रहा था। मन में कुछ तय करता उसी समय माँ पास में बैठते हुए बोली, “क्या सोच रहे हो?
माँ तू भी कमाल करती हैं जरा भी सीमा को बोलती नहीं है। घर में एक समय का पूरा काम उसे सौंप दो।
माँ समझ गई थी कि अन्दर से सेहल बहुत बैचेन है। देख! “बेटे हर इंसान में विशेषताएं भी होती हैं। हमें उन्हें देखना चाहिए। उसकी कमज़ोरी को नहीं।
सीमा घर की बेटी भी है बहू भी है। यह बात उसे समझ में आने दो। आधुनिक तकनीकी शिक्षा में वह एक्सपर्ट हैं उसकी तारीफ करो।
अब तू तो तेरी पसंद की लेकर आया है ना, तो वैसे ही निभाना भी आना चाहिए। मेरी नज़र में वह अच्छी है पहले दिन गृह प्रवेश करने पर अपने घर के रीति रिवाज उसे अलग महसूस हुए थे तब उसने बड़ी सहजता से कहा था, माँ मुझे जो आता नहीं है वो सीखा दोगी ना, बस यही अर्जी मन को भा गई थी। संझा का सूरज अपना आंचल समेटकर बिदाई की तैयारी में था।
सीमा लौटते ही माँ को बिलखकर बोली, “शाम की सब्जी मैं बनाऊंगी नये ढंग से। प्रसन्नता से माँ ने कहा, वाह बहुत बढ़िया मतलब कि शाम को मेरी छुट्टी।
माँ ने मुस्कराते हुए सेहल के स्तब्ध चेहरे को देखा।
सेहल को माँ में एक साथ कई गुणों का भंडार नजर आया।
परिचय :- अमिता मराठे
निवासी : इन्दौर, मध्यप्रदेश
शिक्षण : प्रशिक्षण एम.ए. एल. एल. बी., पी जी डिप्लोमा इन वेल्यू एजुकेशन, अनेक प्रशिक्षण जो दिव्यांग क्षेत्र के लिए आवश्यक है।
वर्तमान में मूक बधिर संगठन द्वारा संचालित आई.डी. बी.ए. की मानद सचिव।
४५ वर्ष पहले मूक बधिर महिलाओं व अन्य महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए आकांक्षा व्यवसाय केंद्र की स्थापना की। आपका एकमात्र यही ध्येय था कि महिलाओं को सशक्त बनाया जा सके। अब तक आपके इंस्टिट्यूट से हजारों महिलाएं सशक्त हो चुकी हैं और खुद का व्यवसाय कर रही हैं।
शपथ : मैं आगे भी आना महिला शक्ति के लिए कार्य करती रहूंगी।
प्रकाशन :
१ जीवन मूल्यों के प्रेरक प्रसंग
२ नई दिशा
३ मनोगत लघुकथा संग्रह अन्य पत्र पत्रिकाओं एवं पुस्तकों में कहानी, लघुकथा, संस्मरण, निबंध, आलेख कविताएं प्रकाशित राष्ट्रीय साहित्यिक संस्था जलधारा में सक्रिय।
सम्मान :
* मानव कल्याण सम्मान, नई दिल्ली
* मालव शिक्षा समिति की ओर से सम्मानित
* श्रेष्ठ शिक्षक सम्मान
* मध्यप्रदेश बधिर महिला संघ की ओर से सम्मानित
* लेखन के क्षेत्र में अनेक सम्मान पत्र
* साहित्यकारों की श्रेणी में सम्मानित आदि
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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