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मां से बड़ी कोई जन्नत नही है…

दामोदर विरमाल
महू – इंदौर (मध्यप्रदेश)

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जब छोटा सा था तब की बात याद आती है।
उस वक्त का मंजर सोच मेरी आँखें भर आती है।
सुना है में बचपन में बहुत रोया करता था।
सारी सारी रात में सोया नही करता था।
सारी रात मां मुझे लोरी सुनाया करती थी।
दिन में नींद के झोंके से रूबरू हुआ करती थी।
दिनभर वो खेतो में काम किया करती थी।
में अकेला हु घर मे इस बात से वो डरा करती थी।
मुझे सीने से लगा रखा जब तक मैं चुप ना हुआ।
पूछती रही बार बार मुझसे लल्ला तुझे क्या हुआ।
मैं बहुत रोता बिलखता मगर चुप नहीं होता था।
और फिर अगले दिन टोटके और नज़र उतारने का चलन होता था।
बहुत याद आते है मुझको वो बीते हुए दिन।
बहुत मुश्किल होता है एक पल भी मां के बिन।
ये तो हुई बचपन की बात अब जवानी की और आता हूँ।
मेरी माँ के त्याग और बलिदान का एक किस्सा सुनाता हूँ।
जैसे जैसे मैं बढ़ता गया मेरी मांग मुझसे बड़ी थी।
मुझे फिक्र नही थी क्योंकि मेरी माँ सामने खड़ी थी।
जो भी चाहिए था मुझको में बोल देता था।
दिल के भी सारे राज अक्सर खोल देता था।
एक मां होने का पूरा अदा फ़र्ज़ किया उसने।
मेरी ख्वाहिश के लिए कर्ज तक लिया उसने।
कोमल हृदय मां ने कठोर दर्द भी सहा है।
फिर भी उसने किसी से कुछ नही कहा है।
किसी ने सच कहा है कि…
क्या लिखूं उस मां के लिए जिसने मुझे खुद लिखा है।
सारे जहां की दौलत है उसमें मुझको खुदा दिखा है।
मां…
मां से बड़ी कोई जन्नत नही है।
मां से बड़ी कोई मन्नत नही है।
जितना झुकूं कम है इसके आगे,
इसके बिना घर मे रंगत नही है।
तुम लाख छुपालो तकलीफे इससे,
वो मां ही है छूपा नही सकते जिससे।
आपकी आंखों को देख सबकुछ समझ जाती है।
तुम्हारे खातिर अपना सुख चैन भी भूल जाती है।।
क्यों करते हो अपनी मां को तुम अनदेखा।
इसी ने तो लिखी तुम्हारी किस्मत की रेखा।।
तुम्हारे लिए रातो में जागकर नींद को चकमा दिया।
तुम्हे संस्कारो में लाकर उसने क्या करिश्मा किया।।
उसी की बदौलत तुम आज समाज मे खड़े हो।
देश दुनिया की नज़रों में सबसे आगे बढ़े हो।
क्या बुढापे तक भी उसे पास नही रख सकते??
जिसने तुम्हे ९ महीने अपनी कोख में रखा है।
तकलीफों का सफर रहा होगा उस वक्त मगर,
बुढापे के सहारे के लिए उसने धैर्य भी रखा है।
आज ही कीजिये प्रण की मां को ना सताएंगे।
जिसने दी खुशिया उसका सहारा बन जाएंगे।
बचपन मे अपनी छाती चीर तुम्हे दूध पिलाया।
आज उसी का कर्ज उतारने का वक़्त है आया।
आज क्यों हर मुश्किल का तुम्हे हल नही मिलता।
शायद कोई मां के पैर छूकर घर से नही निकलता।

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परिचय :- ३१ वर्षीय दामोदर विरमाल पचोर जिला राजगढ़ के निवासी होकर इंदौर में निवास करते है। मध्यप्रदेश में ख्याति प्राप्त हिंदी साहित्य के कवि स्वर्गीय डॉ. श्री बद्रीप्रसाद जी विरमाल इनके नानाजी थे। आपके द्वारा अभी तक कई कविताये, मुक्तक, एवं ग़ज़ल व गीत लिखे गए है, जो आये दिन अखबारों में प्रकाशित होते रहते है। गायन के क्षेत्र कराओके गीत गाने में आप खासी रुचि रखते है।


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