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फिर छिड़ी बात …

दामोदर विरमाल
महू – इंदौर (मध्यप्रदेश)

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फिर छिड़ी बात उन तरानों की,
हम दिलाएंगे तुम्हे याद उन ज़मानों की।

बरसात से ढहते उन कच्चे मकानों की,
खेत मे काम करते मेहनती किसानों की।
गोली बिस्कुल वाली गांव में दुकानों की,
बेवजह किसानों पर लगते लगानो की।
हम दिलाएंगे तुम्हे याद उन ज़मानों की।

देसी घी पीते उन देसी पहलवानो की,
चाय की हरी पत्ती के उन बागानों की।
लैला और मजनू जैसे कई दीवानों की,
रफी और किशोर कुमार के तरानों की।
हम दिलाएंगे तुम्हे याद उन ज़मानों की।

इनाम में मिले बक्शीस और नज़रानो की,
राजा रजवाड़ो के उन महंगे राज घरानो की।
घने जंगल कटीले पहाड़ और ख़ज़ानों की,
डांकुओं की लूट और बेरहम शैतानों की।
हम दिलाएंगे तुम्हे याद उन ज़मानों की।

ज़्यादा दिन रुकने वाले घर आये मेहमानों की,
मां के हाथ से चूल्हे पर बने पकवानों की।
मिट्टी के बर्तन और सूत से कपड़े बनाने की,
शुध्द वातावरण और हरियाली बचाने की।
हम दिलाएंगे तुम्हे याद उन ज़मानों की।

गन्ने की खेती ज्वार बाजरा खलिहानो की,
मुश्किल से मिले गेंहू की रोटी चाव से खाने की।
गरीब मजदूरों से भरे उन कारखानों की,
पुराने महल गहरी सुरंग और तहखानों की।
हम दिलाएंगे तुम्हे याद उन ज़मानों की।

कालापानी की सज़ा जेल में चक्की पिसाने की,
गांव की पंचायत द्वारा वो फैसला सुनाने की।
नाना नानी के संग बीते जमाने की,
कुएं की थाल पर दिनभर नहाने की।
हम दिलाएंगे तुम्हे याद उन ज़मानों की।

खेत मे पकी कचरिया ढूंढकर खाने की,
डेमड़ी (मचान) पर बैठ भुट्टा खाने की।
वो पंछियों को छत पर पानी पिलाने की,
गौ माता को सबसे पहली रोटी खिलाने की।
हम दिलाएंगे तुम्हे याद उन ज़मानों की।

बिना भोग लगाएं घर मे खाना न खाने की,
पीना पैर छुए मां बाप के स्कूल ना जाने की।
बिना स्नान के महिला के रसोई में न जाने की,
पूरे परिवार के साथ अपनी ज़िन्दगी बिताने की।
हम दिलाएंगे तुम्हे याद उन ज़मानों की।

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लेखक परिचय :- ३१ वर्षीय दामोदर विरमाल पचोर जिला राजगढ़ के निवासी होकर इंदौर में निवास करते है। मध्यप्रदेश में ख्याति प्राप्त हिंदी साहित्य के कवि स्वर्गीय डॉ. श्री बद्रीप्रसाद जी विरमाल इनके नानाजी थे। आपके द्वारा अभी तक कई कविताये, मुक्तक, एवं ग़ज़ल व गीत लिखे गए है, जो आये दिन अखबारों में प्रकाशित होते रहते है। गायन के क्षेत्र कराओके गीत गाने में आप खासी रुचि रखते है।


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