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तब गाँव हमें अपनाता है

मुकेश गाडरी
घाटी राजसमंद (राजस्थान)

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आई विडम्बना ऐसी की दूर गया में गाँव से,
कुछ धन कमाने को में चल पड़ा शहर की ओर।
प्रदूषण से जब होने लगे घुटन शहर में,
गाँव जाना तब मन मेरा करता है …….
तब गाँव हमें जो अपनाता है।

शिक्षा ग्रहण के लिए विदेश जो जाते,
ना मिले जब संस्कार परिवार के तब जीवन है अधूरा।
चौपाटी पर बैठ गप्पे जो मारना मन को बढ़ा भाता,
गाँव ना जाकर मन विचलित मेरा हो जाता है ………
तब भी गाँव हमें जो अपनाता है।

खेत पर जाकर भूमि पुत्र बन जाना,
बीज को मिट्टी में मिला कर सोना उगवाते।
चारों तरफ हरियाली देखने को मिल जाती,
तकनीक का मंत्र ऐसा आया सब उसमें डूब गए।
जन लोग शहर की ओर पलायन कर जाते हैं…….
तब भी गाँव हमें जो अपनाता है।

परिचय :- मुकेश गाडरी
शिक्षा : १२वीं वाणिज्य
निवासी : घाटी (राजसमंद) राजस्थान
घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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