Thursday, November 7राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

तब गाँव हमें अपनाता है

मुकेश गाडरी
घाटी राजसमंद (राजस्थान)

********************

आई विडम्बना ऐसी की दूर गया में गाँव से,
कुछ धन कमाने को में चल पड़ा शहर की ओर।
प्रदूषण से जब होने लगे घुटन शहर में,
गाँव जाना तब मन मेरा करता है …….
तब गाँव हमें जो अपनाता है।

शिक्षा ग्रहण के लिए विदेश जो जाते,
ना मिले जब संस्कार परिवार के तब जीवन है अधूरा।
चौपाटी पर बैठ गप्पे जो मारना मन को बढ़ा भाता,
गाँव ना जाकर मन विचलित मेरा हो जाता है ………
तब भी गाँव हमें जो अपनाता है।

खेत पर जाकर भूमि पुत्र बन जाना,
बीज को मिट्टी में मिला कर सोना उगवाते।
चारों तरफ हरियाली देखने को मिल जाती,
तकनीक का मंत्र ऐसा आया सब उसमें डूब गए।
जन लोग शहर की ओर पलायन कर जाते हैं…….
तब भी गाँव हमें जो अपनाता है।

परिचय :- मुकेश गाडरी
शिक्षा : १२वीं वाणिज्य
निवासी : घाटी (राजसमंद) राजस्थान
घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीयहिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने चलभाष पर या गूगल पर www.hindirakshak.com खोजें…🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा जरुर कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉🏻  hindi rakshak manch 👈🏻 … राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे सदस्य बनाएं लिखकर हमें भेजें…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *