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भूल गई थी सच्चाई ये

अख्तर अली शाह “अनन्त”
नीमच (मध्य प्रदेश)
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भूल गई थी सच्चाई ये,
वो अपनी नादानी से।
मछली कैसे रह पाएगी,
दूर, गई जो पानी से।।

मानवता तो आभूषण है,
मरने तक जो साथ रहे।
मानव कैसे भुला सकेगा,
मानवता मनमानी से।।

तर्क जीत भी जाए लेकिन,
सच तो हार नहीं सकता।
ज्ञानी कब हारा है लोगों,
दुनिया में अज्ञानी से।।

नाहक, चुपड़ी रोटी खाए,
हक जेलों में सिर पीटे।
आंखें देख रही है मंजर,
सारा ये हैरानी से।।

नम होने की देर फकत है,
मिट्टी है जरखेज बहुत।
जल्दी ही चहकेगा गुलशन,
बाहर आ वीरानी से।।

माना जान है तुझमें लेकिन,
है क्या जानवरों सा तू।
कब तक दूर रखेगा खुदको,
तू फितरत इंसानी से।।

दूर करें क्यों “अनंत” उनको,
रूहें जिनकी एक हुई।
मर जाता है दूर हुआ तो,
दीवाना, दीवानी से।।

परिचय :- अख्तर अली शाह “अनन्त”
पिता : कासमशाह
जन्म : ११/०७/१९४७ (ग्यारह जुलाई सन् उन्नीस सौ सैंतालीस)
सम्प्रति : अधिवक्ता
पता : नीमच जिला- नीमच (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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