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प्रतिज्ञा

राकेश कुमार तगाला
पानीपत (हरियाणा)
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शालिनी घर लौट रही थी। उसकी आँखे नम थी। कितनी खुश थी वह अपनी शादी को लेकर। पर यह शादी उसके जी का जंजाल बन गई थी।रोज का झगड़ा, हाथा-पाई तंग आ गई थी इससे। उसके सारे सपने बिखर गए थे। वह पढ़ाई में कितनी अच्छी थी। सारा कॉलेज उसकी प्रतिभा को लोहा मानता था। किसी विषय पर वाद- विवाद हो। उसे सबसे पहले चुना जाता था। यह सब गुण उसे अपने पापा से ही मिले थे। प्रतिदिन उसे दो घंटे अखबार पढ़ना अनिवार्य था। ध्यान लगाना उसके पूरे परिवार की दिनचर्या में शामिल था। प्रतिदिन अखबार पढ़ना, शुरू में उसे बोर करता था। उसका मन नहीं चाहता था। राजनीतिक खबरें उसे बिल्कुल भी पसंद नहीं थी। वह राजनीतिक विषय पर कुछ भी बोलने से कतराती थी।
पर पापा को राजनीति की खबरें बहुत पसन्द थीं। रोज दफ्तर से आते एक कप चाय पीते और चर्चाओं का दौर शुरू हो जाता। फिर तो समझो गए तीन-चार घंटे, बड़ा भाई भी इस चर्चा में विशेष रूचि लेता था। माँ को तो महिला लीडर ही बेहतर लगती थी। इंदिरा गांधी उन्हें विशेष पसंद थी। वह उनकी जीवनी बार-बार पढ़ती थी। हमारे घर में पढ़ने का अच्छा माहौल था।
हम सबकी अपनी-अपनी पसंद थी। भाई पंडित जी के फैन थे।मेरा मतलब जवाहरलाल नेहरू के। उन्हें तो उनका व्यक्तित्व बहुत प्रभावित करता था। और पापा भीमराव के फैन थे। अब सवाल था मेरा मुझें कोई स्त्री लीडर पसंद नहीं थी। असल में मुझें जीवनी पढ़ना पसंद नहीं था। पर पापा हमेशा कहते थे कोई रोल मॉडल तो होना ही चाहिए इंसान के जीवन में।
मैं मन ही मन कहती थी, जरूरी तो नहीं है रोल मॉडल होना। पर मैं पापा से किसी भी तरह का वाद-विवाद करने से बचती थी। पापा का मन रखने के लिए कह दिया था लाल बहादुर शास्त्री ही मेरे रोल मॉडल हैं। पापा ने एक दिन पूछ ही लिया तुमने पढ़ा है, शास्त्री जी को। मेरी तो सीटी-पीटी गुल हो गई। हाँ-हाँ पढ़ा है, पापा।
अच्छा कुछ बताओ, नके बारे में। वह देश के प्रधानमंत्री थे। और मैं चुप हो गई थी। आगे भी कुछ बोल, वो पापा। उन्होंने मुझें घूरते हुए देखा। बेटी झूठ बोलना बुरी बात है, जी पापा। ठीक है तुम उनकी जीवनी पढ़ना, इस पर हम चर्चा करेंगे किसी दिन। मन भय से भर गया, पापा जो कहते थे अवश्य करते थे। वह किसी ना किसी दिन मुझसे इसके बारे में अवश्य पूछेंगे?
वैसे भी मुझमें किसी का प्रतिकार करने का हौसला नहीं था। छुट्टी वाले दिन लाल बहादुर शास्त्री की जीवनी खोल कर बैठ गई। शुरू-शुरू में उनका संघर्ष मुझें अजीब लगा। पर जैसे-जैसे मैं उन्हें पढ़ती जा रही थी। मेरा मन उनके संघर्ष पर झुकता जा रहा था। कोई आदमी इतना संघर्षशील हो सकता है, सादा-जीवन उच्च विचार।
मैं उनकी देश-सेवा से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकी। उनकी पृष्ठभूमि साधारण थी। उसके बावजूद शास्त्री जी देश के प्रधानमंत्री बने। इस जीवनी को पढ़ने से मेरे जीवन में एक बड़ा बदलाव आया कि मेहनत से हर मंजिल पाई आ सकती है।
ट्रेन की आवाज ने मुझें चौंका दिया था, मैं वर्तमान में लौट आई। अपनी टिकट संभालती हुई प्लेटफॉर्म पर पहुंच गई। ट्रेन में बैठते ही फिर अतीत के सागर में डूब गई। पापा नहीं चाहते थे मैं इस रिश्ते के लिए हाँ कह दूँ। पर माँ को लड़का बहुत पसन्द आ गया था। उसका कारण मामाजी थे। उन्हीं के ऑफिस में काम करता था। मामा जी का स्वभाव, रहन-सहन पापा को पसन्द नहीं था। वह उनसे नाराज रहते थे। वह उन्हें कहते थे, सिगरेट, शराब पीना छोड़ दें। आज तुम इन्हें पी रहे हो, भविष्य में यह तुम्हें पी जाएगी।
पर मामा जी पर पापा की बातों का कोई असर नहीं होता था। वह पापा जी को ही सलाह दे डालते थे। क्या आप सारा दिन किताबों से माथापच्ची करते-रहते हो? अब कौन सी परीक्षा देनी है, आपको? पापा अपना माथा पीट लेते थे, उनकी बातें सुनकर। कितना फर्क था मामा जी में और मम्मी में। मम्मी को किताबों से बेहद प्यार था। वही मामा जी को किताबों से कोई खास लगाव नहीं था। इसका मतलब यह नहीं था कि मामा जी को ज्ञान नहीं था। उनकी शिक्षा किसी भी तरह कम नहीं थी।
इन्होंने फाइनेंस में एम.बी.ए किया था। मम्मी हमेशा कहती थी, वह पढ़ता कम था,पर नंबर हमेशा अच्छे लाता था, मेरा प्यारा भाई। मुझें अपने भाई पर गर्व हैं। मम्मी उनकी तारीफ करती नहीं थकती थी। मम्मी चाहती थी, मेरी शादी विजय से हो जाए। लड़का जाना-पहचाना है। विजय ने मुझें देखते ही पसन्द कर लिया। मैं सुंदर थीं, बी.ए पास थी।
पापा भी विजय से बहुत कुछ पूछना चाहते थे? पर मामा और मम्मी ने उन्हें घेर रखा था। मम्मी ने पापा को साफ-साफ कह दिया था, आपको सामाजिकता का ज्ञान नहीं है। मेरा भाई सब कुछ संभाल लेगा। पर अब मैं पछतावा रही हूँ। काश पापा छानबीन कर लेते तो मेरा यह हाल नहीं होता। आज सुबह तो विजय ने मेरे बाल पकड़कर मेरी खूब पिटाई कर दी थी। यह कोई पहली बार नहीं हुआ था। मेरे सास-ससुर भी कुछ कम नहीं थे। वह भी मौका पाते ही टूट पड़ते थे मुझ पर। आज उन्होंने मुझें घर से भी निकाल दिया था। वे इतने क्रूर कैसे हो सकते हैं? सभी मुझें दबा कर रखना चाहते थे। उनकी हरकतें दिन प्रति-दिन क्रूर होती जा रही थी।
मैं नहीं चाहती थी कि वह रोज शराब पीकर आए। इतना ही कहा था मैंने, शराब पीना सेहत के लिए अच्छा नहीं है। उन्होंने मेरा बहुत खूब अपमान किया था। सभी ने मेरी पिटाई कर दी थी। मैं रात भर पीड़ा से कहराती रही। पर चुपचाप सहती रही सबकुछ।
मुझें अकेला घर आया देखकर मम्मी-पापा को कोई खास खुशी नहीं हुई थी। मैंने उनकी मनो-स्थिति भाँप ली थी। मम्मी, विजय काफी व्यस्त थे इसलिए अकेले ही चली आई। अब वह थोड़े सहज हुए थे। वैसे भी पापा मेरे घर आने पर अधिक खुश नहीं होते थे। उन्हें हमेशा लगता था कि यह अकेली घर आई हैं तो कोई ना कोई बखेड़ा हुआ होगा। सच तो यही था, मैं चाह कर भी मम्मी-पापा को कुछ नहीं बता सकती थी। उनके सामने खुश रहने का नाटक करती रही। मुझें लगता था इन्हें बता कर कोई विशेष लाभ नहीं होने वाला था।
बस भाई की नज़रों से बचने का प्रयास करती रही। उन्होंने पूछा, कोई परेशानी तो नहीं है ना शालिनी। सब ठीक चल रहा है ना। जी भैया, बस मन उचट गया था, इसलिए चली आई। क्या मैं आ नहीं सकती? क्यों नहीं आ सकती? तेरा घर है पगली, जब तेरा दिल चाहे चली आया करो।मुझें तो तेरा इंतजार रहता है। भैया, आप सिविल सर्विस की तैयारी कर रहे हो। कैसी चल रही है तैयारी?
शालिनी बस कोशिश है। भैया आप जरूर सफल हो जाएंगे। मुझें पूरा भरोसा है, आप पर।मम्मी ने बीच में बोल पड़ी। विजय का फोन आया था, कह रहा था, कल तुम्हें गाड़ी में बिठा देना। कल हाँ, बेटी भाई तुम्हें स्टेशन तक छोड़ आएगा। उसे लगा विजय को अपनी गलती का एहसास हो गया है। पर वह गलत थी, जैसे ही वह घर पहुंची। विजय उस पर टूट पड़ा, क्यों भाई के घर में भी जगह नहीं मिली तुम्हें। चलो आज तुम्हें सीधा कर दूंगा। बाल पकड़कर लगभग घसीटते हुए अपने कमरे में ले जाकर पटक दिया। और शुरू हुआ दर्द और पीड़ा का ताँडव।तीनों ने मिलकर पिटाई शुरू कर दी। साथ ही अपमानित भी करते रहे। तेरे बाप को भी देख लेंगे। हमें तुम्हारे मामा ने धोखा दिया।
मैं सहन नहीं कर सकी। मेरे मामा ने कोई धोखा नहीं किया है। मुझें शादी से पहले पता होता, तो क्या कर लेती साली घटिया औरत? माँ पकड़ इसे आज इसका काम ही तमाम कर देता हूँ। तभी फोन की घंटी बज उठी। फोन पर भाई था, शालिनी घर पहुंच गई है क्या? हाँ-हाँ, आराम कर रही हैं। सास, ने मेरा मुहँ भीच रखा था। विजय ने फोन पटक दिया था।
उस दिन उन्होंने मुझें इतना मारा कि मैं बेहोश हो गई थी। मेरी समझ नहीं आ रहा था। मेरा कसूर क्या है? मेरा बोलना इतना खटकता था, इन्हें। शराब में चूर विजय अपने साथ कुछ शराबी दोस्तों को कमरे में ले आया। मुझें उसकी यह हरकत गवारा नहीं थी। पर मेरा मन किसी दुघर्टना की कल्पना कर रहा था। उसकी शुरुआत हो चुकी थी। विजय के दोस्त मुझें गन्दी नजरों से देख रहे थे। जैसे अभी नोच खाएंगे। वह मेरे शरीर को लगातार घूर रहे थे। सास भी कह रही थी, सेवा कर इन सबकी आज रात मेवा मिलेगी तुम्हें। धिक्कार है तुम पर, जो तुम मुझें इस नरक में धकेल रही हो। शर्म नहीं आती तुम्हें। अगर तुम्हारी बेटी के साथ ऐसा होता। मैं गुस्से से फूट पड़ी। मैंने सोच लिया था, आज चाहे मेरी जीवन लीला समाप्त हो जाए। पर मैं इन शैतानों के हाथों नहीं आऊंगी।
विजय, जुबान चलाती हैं और उसने ने मुझें पीटना शुरू कर दिया। तुम्हें मेरे दोस्तों का स्वागत करना ही होगा। जब मैं नहीं मानी तो मुझें आधी रात को ही घर से निकाल दिया। विजय के शब्द मेरे कानों में गूँज रहे थे। रात को तुम्हें कुत्ते नोच खाएंगे। जब पता चलेगा हमारी बात ना मानने का नतीजा। मेरा रो-रो कर बुरा हाल था।
किसी तरह सुबह घर पहुंची, सर्दियों के कारण घना अंधेरा था। गेट पर खड़े मन में कई सवाल आ रहे थे। मेरा कौन सा घर है? मेरे मन की आवाज शायद भाई ने सुन ली थी। कमरे की लाइट जली, भाई दौड़ता हुआ आया। उसने मुझें संभाला। घर पर सभी लोग जाग चुके थे। मेरा बुरा हाल देखकर, मम्मी गुस्से में थी। सारा हाल जानकर मम्मी चिल्लाई, हम उन्हें नहीं छोड़ेंगे। भाई, अब मैं उस घर में नहीं जाना चाहती।उन्होंने मेरा मान-सम्मान सब कुछ लूट लिया। भाई ने मुझें बाहों में भर लिया, तुम्हारा भाई जिंदा है।
आज दस दिन हो गए हैं। मैं सामान्य हो गई। मम्मी-पापा ने कहा, बेटी तुम तैयार हो जाओ। हम तुम्हें खुद छोड़ कर आएंगे तुम्हारे ससुराल।और उन्होंने समझाएंगे भी। वह आगे से ऐसी हरकत ना करें। मम्मी, मैं वहाँ नहीं जाना चाहती। पर बेटी इस घर में भी हम तुम्हें कब तक रखेंगे? बेटी का असली घर तो वही होता है जहां उसकी शादी होती है। तुम अपना निर्णय बताओ। मैंने प्रतिज्ञा की है, मैं उन्हें नहीं छोडूंगी। क्या तुम हमारा सिर झुकाना चाहती हो? कोई कोर्ट-केस होगा, वह बड़े आदमी हैं। नहीं माँ, मैं आई.पी.सी एस की तैयारी करना चाहती हूँ। मैं उन्हें तथा उन जैसे को सबक सिखाना चाहती हूँ। भाई ने मेरे सिर पर हाथ रख दिया। जैसे कह रहा हो मैं तुम्हारे साथ हूँ। तुम अपनी प्रतिज्ञा पूरी करो। मैं रात-दिन पढ़ाई में जुट गई। भाई मेरी हर तरह से सहायता कर रहा था। रात को उठकर चाय पिलाता, किताबों लाकर देता। मम्मी-पापा मेरे फैसले से खुश नहीं थे। पर मेरी जिद के आगे उन्हें झुकना पड़ा।
मेरी मेहनत रंग लाई। मैंने पूरे भारत में चौथा स्थान प्राप्त किया। मुझें मुहँ मांगी पोस्टिंग मिली। उसी शहर में जहाँ मैंने पीड़ा झेली थी, अपमान की। भाई बहुत खुश था। मैंने अपने जैसी पीड़िता महिलाओं के लिए उम्मीद की किरण खोल दी। पूरे शहर में महिलाओं के साथ कोई भी बदसलूकी नहीं हो रही थी। महिलाएं स्वतंत्र थी। विजय तथा उसके परिवार ने अपने कर्मों की माफी मांगी। और घर लौटने का आग्रह किया।
पर मुझ पर किसी बात का कोई असर नहीं हुआ। मैं चाहती तो विजय के परिवार से अपने एक-एक अपमान का बदला ले सकती थी। पर मैंने दूसरा ही रास्ता चुना। देश सेवा का अपने जैसी पीड़ित महिलाओं को सहारा देने का। मन ही मन अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने का। मम्मी-पापा भी मेरी प्रतिज्ञा तथा फैसले के आगे नत मस्तक थे।

परिचय : राकेश कुमार तगाला
निवासी : पानीपत (हरियाणा)
शिक्षा : बी ए ऑनर्स, एम ए (हिंदी, इतिहास)
साहित्यक उपलब्धि : कविता, लघुकथा, लेख, कहानी, क्षणिकाएँ, २०० से अधिक रचनाएँ प्रकाशित।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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