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पैकेट

शिरीन भावसार
इंदौर मध्य प्रदेश

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लछमी ओ लछमी पेशाब पानी कछु की जरूरत हो तो उतर आओ नीचे….अरे का सोच रही हो…इतना देर की बैठी हो…पाव मुरहा जाही…उतर आओ।

सुरेश की आवाज़ सुन ट्रक पर सिमटी बैठी लछमी भय और पीड़ा से और भी ज्यादा सिमट गई।

उस पूरे ट्रक में लछमी ही अकेली महिला थी इस विकट परिस्थिति में परेशानी अब वह कहे भी तो किससे और कैसे?

लॉक डॉउन की घोषणा होने के बाद जल्दबाजी में अपने गांव वापस लौटने के लिए वे दोनो पहने हुए कपड़े और खाली टिफ़िन के साथ रात १० बजे इस ट्रक में चढ़े थे और अब दोपहर का १ बजने आया था।

बढ़ते समय के साथ उसकी परेशानी बढ़ती ही जा रही थी।

अपनी गन्दी साड़ी को समेटती वह गठरी सी हो गई थी कि तभी उसे बाहर एक महिला की आवाज़ सुनाई दी. वह किसी से पूछ रही थी कि क्या तुम लोगो के साथ औरते भी है ?

महिला की आवाज़ सुन लछमी ने राहत की सांस ली और गर्दन बाहर कर जब उस महिला को देखा तो बस देखती ही रह गई. लछमी के चेहरे पर खुशी की एक लहर नाच उठी।

उस महिला के हाथों में सेनेटरी नैपकिन के पैकेट थे. जिन्हें वह महिलाओं में बांट रही थी।

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परिचय :- शिरीन भावसार
पति : सचिन भावसार
शिक्षा : एम एस सी (वनस्पति विज्ञान)
निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश
पुस्तक : स्पंदन
प्रकाशन : किस्सा कोताह, विश्वगाथा पत्रिका सहित लोकजंग भोपाल, विनय उजाला दैनिक इंदौर, आदि अखबारों व युगप्रवर्तक, प्रतिलिपि, मातृभारती, अंतराशब्दशक्ति .कॉम आदि वेब पोर्टल, हिन्दी रक्षक मंच hindirakshak.com में कविताएँ, लघुकथाएँ एवं आलेख प्रकाशित .
अन्य रुचियां : लेखन एवं पठन पाठन… किताबें और रसोई मुझे हर मानसिक तनाव से बाहर खींच लाती है।
ख्वाहिश : बंजारों सा भटकना …बस मैं मेरी डायरी और छोटा सा बैकपैक.
अपनी एक विशेषता : किसी भी इंसान या बात को लेकर जजमेंटल न होना. बोलना कम और सुनना अधिक.
अपना एक दुर्गुण : लड़ती नही हूँ मगर (मौका देने पर भी) एक बार जो नज़रों से उतर जाए फिर वह दुबारा मेरे मन मस्तिष्क में घर नही कर पाता।
घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।


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