Sunday, December 22राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

मालवी बोली को समृद्ध करता उपन्यास ‘किनारा की खोज’

 पुस्तक : ‘किनारा की खोज’
अनुवादक : हेमलता शर्मा ‘भोलीबेन’
प्रकाशक : प्रिन्सेप्स प्रकाशन, बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
मूल्य : १०/- रु.
पृष्ठ : ८६
समीक्षक :- राम मूरत ‘राही’, इन्दौर (म.प्र.)

विख्यात व्यंग्यकार श्री हरिशंकर परसाई के लघु उपन्यास ‘तट की खोज’ का मालवी बोली में ‘किनारा की खोज’ नाम से अनुवाद किया है साहित्यकार सुश्री हेमलता शर्मा ‘भोलीबेन’ ने। अनेक सम्मान से सम्मानित भोलीबेन कविता, व्यंग्य, लघुकथा, कहानी, आलेख एवं संस्मरण भी लिखती हैं, साथ ही वे एक रंगमंच कलाकार, मंच संचालक भी हैं। मालवी बोली के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु निरंतर कार्यरत हैं। पिछले वर्ष उन्होंने ‘अपणो मालवों भाग-१ में ‘मालवी लोकोक्तियां एवं मुहावरे’ का संकलन निकाला था, जिसे पाठकों द्वारा काफी पसंद किया गया था। उन्होंने मालवी बोली के पाठकों, और इस बोली में रुचि रखने वालों को नाम मात्र की कीमत (१० रु.) में उपलब्ध करवाया था, जो प्रशंसनीय और सराहनीय है। यह उपन्यास भी इसी नाम मात्र की कीमत पर उपलब्ध है।

किसी रचना का दूसरी भाषा या बोली में अनुवाद करना आसान नहीं होता है। इस बारे में वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुभाष नीरव जी ने एक आलेख में लिखा है कि – ‘किसी रचना की आत्मा का आप दूसरी भाषा की काया में प्रवेश तब तक सही मायने में नहीं करवा सकते, जब तक कि आपके अंदर रचनात्मक कौशल न हो। यह रचनात्मक कौशल ही उस रचना का अनुवाद के माध्यम से पुनः सृजन कहलाता है।’

प्रो. शैलेन्द्रकुमार शर्मा जी ने अपने प्राक्कथन में लिखा है कि ‘श्रेष्ठ अनुवाद के लिए जरूरी है कि अनुवादक में कुछ विशेष प्रकार की प्रतिभा, ज्ञान और कौशल हो। एक अच्छा अनुवादक वह है, जो स्त्रोत भाषा एवं लक्ष्य भाषा के लिखित एवं वाचिक दोनों रूपों का अच्छा ज्ञाता हो। वह पाठ जिस विषय का है, उसकी जानकारी रखता हो। स्त्रोत भाषा तथा लक्ष्य भाषा के सम्यक ज्ञान और विषय के सम्यक ज्ञान के साथ सतत् अध्ययनशीलता और अभ्यास जरूरी है, तभी अनुवाद कार्य परिपूर्ण हो सकता है।’

‘तट की खोज’ उपन्यास की नायिका है शीला, जो मनोहर से प्रेम करती है, लेकिन कुरुतियों, सामाजिक बेड़ियों की वजह से उसकी शादी नहीं हो पाती है और फिर वह एक दिन मनोहर को बगैर बताये एक पत्र छोड़कर कहीं दूर चली जाती है, किनारा की खोज में। शीला के पत्र की अंतिम कुछ पंक्तियां पढ़कर अंदाजा लगाया जा सकता है कि भोलीबेन ने कितना सुंदर अनुवाद किया है- हूं जिनगी के पाछी शुरू करणे जय री हूं। यां की परिस्थिति होण में जिनगी पाछी शुरू नी करी सकती। यां की जमीन विषाक्त हुय गी हे म्हारा वास्ते। हूं दूसरी जमीन में जय ने जिनगी को रोपो लगउंवा। हूं पलायन नी करी री हूं, नवी जिनगी की खोज में जय री हूं! एक लेर मंझधार में लय जय ने डुबय दे हे तो दूसरी उछाली ने किनारे लगय दे हे। हूं दूसरी लेर में जय री हूं। हूं किनारा की खोज में हूं। इस रोचक, मानवीय संवेदनाओं से लबालब उपन्यास का मालवी बोली में अनुवाद कर भोलीबेन ने मालवी बोली को समृद्ध किया है। मैं मालवी बोली बोल नहीं सकता, लेकिन समझता जरूर हूं। इसलिए मैं कह सकता हूं कि उन्होंने जिस उद्देश्य को लेकर ‘तट की खोज’ का अनुवाद किया है, उसमें वे अवश्य सफल होंगी। उन्हें मैं इस शानदार अनुवाद के लिए बहुत-बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं और आशा करता हूं कि ‘किनारा की खोज’ को सुधी पाठक अवश्य पसंद करेंगे और साहित्य जगत में भी इसका भरपूर स्वागत किया जाएगा।


आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा अवश्य कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय  हिन्दी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉 👉 hindi rakshak manch  👈… राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…🙏🏻.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *