
कंचन प्रभा
दरभंगा (बिहार)
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हमारे देश का ये एक अभिशाप है
प्रत्यक्षदर्शी भी अन्धे बन जाते है
फिर ऐसा लगता है मेरे देश का
ये कैसा इन्साफ है?
ये कैसा इन्साफ है?
न्याय न्याय वो करते जाते
जिनके सर पर ना छत है ना आस है
न्याय फिर मिल जाता है उनको
सत्ता, पैसा और महल जिनके पास है
ये कैसा इन्साफ है?
ये कैसा इन्साफ है?
प्रशासन भी साथ उन्ही का देती
जिनसे उनकी पैसों की बुझती प्यास है
न्याय कहाँ मिलता है उसको
जिन्हे रोटी, कपड़ो की हमेशा तलाश है
ये कैसा इन्साफ है?
ये कैसा इन्साफ है?
देख देख कर ये दुर्गति
होता दुख मुझे अपार है
भ्रष्टाचार अगर कम नही हुआ तो
एक दिन भारत का विनाश है
ये कैसा इन्साफ है?
ये कैसा इन्साफ है?
पर कुछ तो अच्छा हुआ देश मे
अब दिख रहा कुछ साल में
मोदी जी अगर रहे सलामत
हो रहा उनका बेहतर प्रयास है
अब होता इन्साफ है।
अब होता इन्साफ है।
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