========================
रचयिता : वन्दना पुणतांबेकर
गर! सफर में साथ हो अपनो का, तो सफर आसां हो ही जाता है।
तलाश हो गर! सही मंजिल की, तो कारवाँ बन ही जाता है।
वादियां खिली-खिली सी हो।
गर! ना हो दोस्त साथ तो।
चमन भी, चुभ ही जाता है।
गर! साथ हो दोस्त, परिवार तो।
विराना! चमन हो ही जाता है।
मुक़द्दर सभी का अपना-अपना।
लेकिन! कोई मंजिल तो होगी।
जहाँ में! जहाँ, हमसाथ हो ही जाता है।
मत कर! तलाश बिखरे पन्नो की।
कसूर पन्नो का नही।
गर! वक्त साथ ना हो तो।
हवा का रुख बदल ही जाता है।
चलते रहो, मुस्कुराते रहो।
सफर में! धूप-छावं तो होगी।
गर! सफर हो साथ अपनो का तो।
सफर आसां हो ही जाता है।
परिचय :- नाम : वन्दना पुणतांबेकर
जन्म तिथि : ५.९.१९७०
लेखन विधा : लघुकथा, कहानियां, कविताएं, हायकू कविताएं, लेख,
शिक्षा : एम .ए फैशन डिजाइनिंग, आई म्यूज सितार,
प्रकाशित रचनाये : कहानियां:- बिमला बुआ, ढलती शाम, प्रायचित्य, साहस की आँधी, देवदूत, किताब, भरोसा, विवशता, सलाम, पसीने की बूंद,
कविताएं :- वो सूखी टहनियाँ, शिक्षा, स्वार्थ सर्वोपरि, अमावस की रात, हायकू कविताएं राष्ट्र, बेटी, सावन, आदि।
प्रकाशन : भाषा सहोदरी द्वारा सांझा कहानी संकलन एवं लघुकथा संकलन
सम्मान : “भाषा सहोदरी” दिल्ली द्वारा
आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने मोबाइल पर या गूगल पर www.hindirakshak.com खोजें…🙏🏻
आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा जरुर कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने मोबाइल पर प्राप्त करने हेतु हिंदी रक्षक से जुड़ने के लिए अपने मोबाइल पर पहले हमारा नम्बर ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…