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बंधक तन में टहल रही है

भीमराव झरबड़े ‘जीवन’
बैतूल (मध्य प्रदेश)
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आधार छंद- विष्णुपद

बंधक तन में टहल रही है, श्वासें बन उलझन।
घर के बाहर पग रखने में, डरती है धड़कन।।

डाल दिया आ खुशियों के घर, राहू ने डेरा।
दुख की संगीनों ने तनकर, उजला दिन घेरा।।
जगी आस का कर देता है, चाँद रोज खंडन।।
घर के बाहर पग रखने में, डरती है धड़कन।।१

अस्पताल के विक्षत तन में, श्वासों का टोटा।
गरियाता पर अटल प्रबंधन, बिल देकर मोटा।।
दैत्य वेंटिलेटर नित तोड़े, भव का अनुशासन।
घर के बाहर पग रखने में, डरती है धड़कन।।२

एंबुलेंस की चीखें भरती, बेचैनी मन में।
भूल गयी अब लाशें काँधे, चलती वाहन में।।
बदल दिया है इस मौसम ने, मानस का चिंतन।
घर के बाहर पग रखने में, डरती है धड़कन।।३

परिचय :- भीमराव झरबड़े ‘जीवन’
निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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