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किताबें

संजय वर्मा “दॄष्टि”
मनावर (धार)

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किताबें भी कहती हैं शब्दों में
हमसे कुछ ज्ञान पाते रहो,
हमें भी अपने घरो में फूलो कि तरह
बस यूँ ही तुम सजाते रहो।

किताबें बूढी कभी न हो तो इश्क कि तरह
ये ख्यालात दुनिया को दिखाते रहो,
कुछ फूल रखे थे किताबों में
यादों के सूखे हुए फूलो से भी
महक ख्यालो में तुम पाते रहो।

आँखें हो चली बूढी फिर भी
मन तो कहता है पढ़ते रहो,
दिल आज भी जवाँ किताबों की तरह
पढ़कर दिल को सुकून दिलाते रहो।

बन जाते है किताबों से रिश्ते
मुलाकातों को तुम ना गिनाया करों,
माँग कर ली जाने वाली किताबों को
पढ़कर जरा तुम लौटाते रहो।

परिचय :- संजय वर्मा “दॄष्टि”
पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा
जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन)

शिक्षा :- आय टी आय
व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग)
प्रकाशन :- देश – विदेश की विभिन्न पत्र – पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति “दरवाजे पर दस्तक”, खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा -अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता भारत की और से सम्मान – २०१५, अनेक साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित
संस्थाओं से सम्बद्धता :- शब्दप्रवाह उज्जैन, यशधारा – धार, मगसम दिल्ली,
काव्य पाठ :- काव्य मंच/आकाशवाणी/ पर काव्य पाठ, शगुन काव्य मंच
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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