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“सुन्दरकाण्ड के सार” के सृजन की पृष्ठ भूमि

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प्रेम नारायण मेहरोत्रा
जानकीपुरम (लखनऊ)
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एक प्रातः मेरी नींद ४ बजे खुल गई तो मैंने सोचा कुछ देर और सोते है पर १५ मिनट तक नींद नही आई तो मैं समझ गया कि हनुमान जी कुछ लिखाना चाहते हैं। मैँ उठकर मेज पर बैठ गया और सोचा, कि ज्येष्ठ का महीना आ रहा है जो लखनऊ में पूर्ण रूप से हनुमान जी को समर्पित होता है और ज्येष्ठ माह का हर मंगल बड़े मंगल के रूप में मनाया जाता है। मंगल को शहर सैकड़ो भंडारे लगते हैं और गरीब अमीर सभी हनुमान जी का प्रसाद मांगकर खाते हैं, की हनुमान जी की महिमा पर एक भजन लिखूं। भजन १० मिनट में लिख गया। जब मैने उसे फिर पढ़ा तो पाया कि हनुमान जी सुन्दरकाण्ड की कथा के क्रम में ही लिखा रहे हैं मैँ गदगद हो गया कि हनुमान जी प्रसन्न हो गए हैं अतः मेरी कई सालों की विलंबित इक्षा अब पूरी हो जाएगी। दो दिन बाद नास्ते के पश्चात मैं पेन पैड लेकर बैठा और मेरे आराध्य हनुमान जी ने मात्र ३०/३५ मिनेट में १२ मुक्तक और लिखवाकर १५ मुक्तकों में “सुन्दरकाण्ड का सार” लिखवा दिया।
मैंने उसी दिन प्रेस के मालिक अतुल गुप्ता जी को बुलाया और उनको पढ़ने को दिया तो वे बोले कि ये तो आपने सुन्दरकाण्ड को लिख दिया। मैंने उनको कहा कि अच्छे रूप के साथ ४००० प्रतियां छाप कर सोमवार तक दीजीये। पहले बड़े मंगल को हनुमान जी के मंदिरों में भक्तों को प्रसाद रूप बांटना है।
उसी के एक सप्ताह बाद संगीत निर्देशक और गायक मुम्बई से आ गये। उनको एक छापा हुआ पत्रक दिया तो पढ़ने के बाद बोले में ले जा रहा हूँ इसको रिकॉर्ड करूँगा। उन्होंने रेकॉर्ड करके जब पद्मश्री अनूप जलोटा जी को सुनाया तो उन्होंने स्वयं कहा इसकी लॉन्चिंग मेरी आवाज में अभी रिकॉर्ड करो।
इस तरह से हनुमान जी का प्रसाद आज आप सुन पा रहे हैं। इसको यदि पूरी श्रद्धा के साथ नित्य नास्ते की मेज पर सुनने की आदत बना लें आपका पूरा दिन बहुत अच्छा गुजरेगा ऐसा मेरा विश्वास है।
राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच के सम्पादक पवन मकवाना जी का आभार की उन्होंने मुझे इसके सृजन की पृष्ट भूमि लिखने को कहा।

परिचय :- प्रेम नारायण मेहरोत्रा
निवास : जानकीपुरम (लखनऊ)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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